कभी विचार कीजिए कि किसी स्कूल या कॉलेज को किस आधार पर श्रेष्ठ कहा जाना चाहिए? बेशक, इसका एकमात्र पैमाना यही हो सकता है कि उस शिक्षण संस्थान ने अपने विद्यार्थियों को इस तरह के संस्कार दिए जिसके चलते उन्होंने आगे चलकर बेहतर नागरिक बनकर देश और समाज की सेवा की। इसका एक पैमाना यह भी हो सकता है कि क्या उसने ( शिक्षण संस्थान) ने अपना विस्तार किया ? विस्तार से मतलब है कि क्या उसने अपनी कोई अन्य शाखा भी खोली और वहां का शिक्षण भी श्रेष्ठ और स्तरीय रहा । बेशक, इस मोर्चे पर दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज का नाम लेना होगा। सेंट स्टीफंस कॉलेज को गांधी जी के परम सहयोगी दीनबंधु सी.एफ.एंड्रूज की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने स्थापित किया था। एंड्रूज ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी भारत की आजादी के समर्थक थे। उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाया भी। अब उनके कॉलेज ने अपना विस्तार कर लिया है। इसने कोई अन्य कॉलेज नहीं खोला है।
दरअसल अब दिल्ली ब्रदरहुड़ सोसायटी ने दिल्ली और हरियाणा के सोनीपत की सीमा के राई नामक ग्रामीण क्षेत्र में सेंट स्टीफंस कैंम्ब्रिज स्कूल खोला है। यानी कि यह स्कूल शहरों और महानगरों की चमक-दमक से दूऱ ज्ञान की रोशनी को फैलाएगा। निश्चित रूप से प्रत्येक शिक्षण संस्था का यही लक्ष्य होना चाहिए। भारत के गांवों में जितने बेहतर स्कूल खुले, उतना ही बेहतर होगा। हमारे बड़े-बड़े शहरों में तो अब खूब स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्लाय खुल रहे हैं, पर जरूरत है ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक स्कूल खोलने की है, जिनकी स्तरीय फैक्ल्टी हो और वहां बाकी तमाम सुविधाएं भी मौजूद हों।यह प्रयास पिछले लगभग 140 वर्षों में 700 से ज्यादा शिक्षण संस्थान देश के कोने-कोने में खोले और सेवा भाव से चलाया| सन 1885 में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित डी०ए०वी०(पूरा नाम- दयानंद ऐग्रो वेदिक स्कूल और कॉलेज समूह इस बात का उत्कृष्ठ उदाहारण है कि समाज में सेवा भावना से चलाया जाने वाला कार्य भी सफल हो सकता है|
अभी कुछ दिन पहले संघ लोक सेवा परीक्षा ( यूपीएससी) की परीक्षा के नतीजे घोषित किए गए। सारा मीडिया सफल कैंडिडेट्स के इंटरव्यू करता रहा। बीते सालों की तरह से इस बार भी राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़े हुए बहुत से विद्यार्थियों ने यूपीएससी परीक्षा को क्रैक किया। सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र रहे अंशुल भट्ट ने मेरिट लिस्ट में 14 वां स्थान ग्रहण किया। विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक अध्यक्ष शक्तिकान्त दास सेंट स्टीफंस कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी सेंट स्टीफंस कॉलेज से ही पढ़ाई की है। इसने देश के न जाने कितने सितारे निकाले हैं। उनकी गिनती करना असंभव है।
सेंट स्टीफंस कॉलेज के शुरूआती दौर में पढ़ने के लिए मौजूदा हरियाणा राज्य से चौधरी छोटूराम भी आया करते थे। वे आगे चलकर किसानों के मसीहा कहलाए। अब भी हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनता चौधरी छोटूराम को अपना मसीहा मानती है। संयोग देखिए कि अब उनके प्रदेश में उनके शिक्षण संस्थान ने दस्तक दे दी। जाहिर है, इसका लाभ ग्रामीण क्षेत्र की जनता को भी मिलेगा।
अगर आपका कभी दिल्ली के चांदनी चौक में जाना हो तो आपको वहां पर किनारी बाजार को ढूंढने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। वहां से आप कटरा खुशहाल राय में चंद मिनटों में पहुंच सकते हैं। यहां पर पहुंचकर किसी से पूछिए कि सेंट स्टीफंस कॉलेज कहां था? आपको कोई ना कोई बता देगा कि उस सामान्य सी हवेली का रास्ता जहां से 1 फरवरी, 1881 को सेंट स्टीफंस कॉलेज की यात्रा शुरू हुई थी। यह तब कलकत्ता यूनिवर्सिटी का हिस्सा था। सेंट स्टीफंस कॉलेज की दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित पहली इमारत को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि यहां से शुरू हुआ सेंट स्टीफंस कॉलेज बुलंदियों को छूने लगेगा। जो सफर 140 साल से भी पहले शुरू हुआ था था, उसका अब विस्तार हो चुका है। सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज खुल चुका है। महत्वपूर्ण है कि दिल्ली में ब्रदरहुड ऑफ दि एसेंनडेंड क्राइस्ट की स्थापना सन 1877 में हुई थी। इसका संबंध कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से है। इसने आगे चलकर अपना नाम दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी रखा। इसने ही राजधानी में सेंट स्टीफंस अस्पताल की भी स्थापना की थी। देश के बंटवारे के बाद सरहद के उस पार से लुटे-पिटे आए लाखों हिन्दू और सिख शरणार्थियों का इस अस्पताल ने श्रेष्ठ इलाज किया था।
एक बात बहुत साफ है कि स्तरीय शिक्षा सर्वसुलभ होनी बहुत आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि सालों, दशकों से स्थापित शिक्षण संस्थाएं अपना तेजी से विस्तार करें। वे देश के ग्रामीण क्षेत्रों का रुख भी करें। वहां पर स्तरीय और सस्ती शिक्षा उपलब्ध करवाएं। स्कूल या कॉलेज खोलने का आधार अपनी जेबें भरना नहीं होना चाहिए। जो शिक्षा के नाम पर मोटी कमाई कर रहे हैं, वे सच में मां सरस्वती का अपमान कर रहे हैं। मैं यहां पर महात्मा गांधी के परम शिष्य ब्रज कृष्ण चांदीवाला का उल्लेख करना चाहता हूं। चांदीवाला गांधी जी से पहली बार 1918 में मिले थे। तब गांधी जी दिल्ली आए ही थे। उसके बाद वे गांधी जी के जीवपर्यंत शिष्य बनकर साथ रहे। उन्होंने गांधी जी के पार्थिव शरीर का 31 जनवरी,1948 की रात को अंतिम स्नान भी करवाया था। ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने अपनी मां और समाज सेविका श्रीमती जानकी देवी जी के नाम पर 1959 में राजधानी में जानकी देवी कॉलेज स्थापित किया था। इस क़ॉलेज ने अब तक लाखों बेटियों को साक्षर बनाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। यहां इन्द्रप्रस्थ हिन्दू गर्ल्स स्कूल की चर्चा करना समीचीन होगा। राजधानी का यह कन्या विद्लाय 1904 में शुरू हुआ था। यह उत्तर भारत के पहले कन्या विद्लायों में से एक माना जाता है।
कमला नेहरू, प्रख्यात सरोद वादिका शरण रानी बाकलीवाल, कपिला वात्सायन वगैरह ने इसी में शिक्षा ग्रहण की थी। इस स्कूल के प्रबंधन ने ही राजधानी में इन्द्रप्रस्थ कॉलेज खोला जिसने हाल ही में अपना 100 साल का सफर पूरा किया है।
यह कैसे हो सकता है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक रामजस कॉलेज के संस्थापक , शिक्षाविद और दानवीर राय केदारनाथ का उल्लेख रह जाए। उन्होंने अपने पिता लाला रामजस मल के नाम पर रामजस कॉलेज और अनेक स्कूल स्थापित किये। राय केदारनाथ दिल्ली के सेशन जज भी रहे। उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर ज्ञान की रोशनी फैलाने में अपना जीवन लगा दिया। कहते हैं कि वे अपने स्कूलों की इमारतों के निर्माण के समय खुद सिर पर ईंटे ढोया करते थे। रामजस कॉलेज और स्कूलों में देशभर के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। यहां दिल्ली विश्व विद्लाय की तरफ से भी एक स्कूल चलाया जाता है। यह विश्व विद्लाय कैंपस में ही है। उसने कुछ समय पहले अपनी 75वी वर्षगांठ मनाई। कितना अच्छा हो कि दिल्ली विश्व विद्लाय की तरफ से किसी ग्रामीण इलाके में स्कूल चलाया जाये।
आर.के. सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)