लखनऊ। वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी डॉ.दरबारी लाल अस्थाना का जन्मोत्सव, बुधवार 24 जुलाई को “प्राथमिक विद्यालय नरही, जोन तीन नगर क्षेत्र लखनऊ” में सुबह 11 बजे से आयोजित किया जा रहा है। डॉ. दरबारी लाल अस्थाना ट्रस्ट की ओर आयोजित इस समारोह में जादूगर सुरेश के दल द्वारा पर्यावरण संरक्षण और देशभक्ति से ओत-प्रोत जादू और कठपुतली की प्रस्तुतियां होंगी। इसके साथ ही सम्मान समारोह का भी आयोजन किया जा रहा है।
डॉ.दरबारी लाल अस्थाना के पुत्र और भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक पुनीत अस्थाना के अनुसार सुप्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी डॉ. दरबारी लाल अस्थाना का राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान राजकीय कॉलेज आगरा के बहिष्कार के साथ शुरू हुआ था। वृन्दावन स्थित सुप्रसिद्ध प्रेम महाविद्यालय में उन्होंने ग्रामोत्थान का कार्य किया और ब्रज के अनेक गांवों का दौरा कर आम लोगों में आज़ादी और राष्ट्रीयता की भावना जगायी थी। डॉ.दरबारी लाल अस्थाना को ग्रामीण अर्थशास्त्र और पुनर्निर्माण कार्य का विशेष अध्ययन करने के लिये गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के विश्वविख्यात शान्ति निकेतन भी भेजा गया था जहां गुरुदेव ने उन्हें एक कलम भी आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया था। युसुफ मेहर अली द्वारा संचालित अखिल भारतीय युवक आन्दोलन में भी डॉ.दरबारी लाल अस्थाना सक्रिय रहे थे। सिंधियों के महान आध्यात्मिक गुरु श्रीयुत टी.एल.वासवानी के भारतीय सांस्कृतिक पुनरुत्थान आन्दोलन में भी डॉ. दरबारी लाल अस्थाना ने अहम भूमिका अदा की थी। उसकी शाखाओं की स्थापना के लिये डॉ. दरबारी लाल अस्थाना ने देशभर का दौरा भी किया था। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन में डॉ. दरबारी लाल अस्थाना काफी सक्रिय रहे थे। साल 1930 में वृंदावन स्थित प्रेम महाविद्यालय के छात्रों के साथ जब डॉ. दरबारी लाल अस्थाना सत्याग्रह आन्दोलन कर रहे थे तब उन्हें 9सी-12 धारा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। 4 अगस्त 1930 को उन्हें छह महीने का कठोर कारावास का दंड सुनाया गया। 11 अक्टूबर 1930 में उन्हें मथुरा जेल से सीतापुर जेल में ट्रांसफर किया गया था। जेल से रिहा होने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में वह सक्रिय रहे। मथुरा और आगरा कांग्रेस कमेटियों के भी डॉ.दरबारी लाल अस्थाना अग्रणीय कार्यकर्ता रहे।
उन्होंने शक्ति आश्रम का संचालन भी किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद डॉ. दरबारी लाल अस्थाना ने देहरादून में रहकर मेडिकल प्रैक्टिस आरंभ की। साल 1952-53 में वह देहरादून की नगर कांग्रेस कमेटी के प्रधानमंत्री रहे। उसके बाद वह लखनऊ आ गए और साल 1954 से उन्होंने उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि लखनऊ केन्द्र के संचालक के रूप में लम्बे समय तक कार्य किया। उन्होंने गांधी तत्व प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश में अनेकों गांधी अध्ययन केन्द्रों और युवा शिविरों का आयोजन किया। उत्तर प्रदेश हरिजन सेवक संघ की कार्यकारणी और संयुक्त सदाचार समिति की कार्यकारिणी के भी वह सदस्य रहे थे। इसके साथ ही डॉ. दरबारी लाल अस्थाना, गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के पदाधिकारी के रूप में भी समाज सेवा करते रहे। स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें 15 अगस्त 1972 को ताम्रपत्र से सम्मानित किया था। 3 मार्च 1985 को लगभग 80 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ था। उन्हें अपने देश पर गर्व और बच्चों से असीम प्रेम था।