इंग्लिश बोर्डिंग स्कूल की प्रिंसिपल : आइए डॉक्टर साहब। बैठिए।
डॉक्टर विनोद अपने दो बच्चों बेटा और बेटी को लेकर स्कूल पहुंचे थे। डॉक्टर साहब आज बहुत कमजोर और मायूस दिख रहे थे। उनका चेहरा बता रहा था कि उन पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा है।
डॉक्टर विनोद कुर्सी पर बैठ जाते हैं।
प्रिंसिपल : डॉक्टर साहब आपके बच्चों ने तो कमाल कर दिया। नाइन स्टैंडर्ड में आपके बेटे आकाश के 98 प्रतिशत मार्क्स आए हैं और आपकी निहा ने सेवन स्टैंडर्ड में 96 परसेंट मार्क्स लेकर क्लास टॉप किया है।
डॉक्टर विनोद, प्रिंसिपल की बातें बिना किसी रिएक्शन से सुने जा रहे थे। मायूसी और थकान की वजह से वो कुछ भी बोल पाने में समर्थ थे। डॉक्टर विनोद की आंखों में मानो आंसुओं का सैलाब भर आया हो, वो उस सैलाब को किसी तरह अंदर ही रोके पड़े थे।
प्रिंसिपल को रहा नहीं जाता और वो डॉक्टर साहब से कहती हैं : अजीब बाप हैं आप। आपके बच्चों ने स्कूल में टॉप किया है और आपके चेहरे पर कोई खुशी का भाव भी नहीं है।
डॉक्टर विनोद रुआंसु हो जाते हैं और रुंधे गले से प्रिंसिपल से कहते है : मैडम आप मेरे बच्चों की टीसी काट दें।
प्रिंसिपल एक दम कुर्सी से खड़ी हो जाती हैं : क्या? क्या कहा आपने?
डॉक्टर विनोद कुर्सी को छोड़ते हुए : मैं अब, बच्चों को आपके यहां नहीं पढ़ा सकता।
इतना सुन दोनो बच्चों की आंखों में आसूं भर आते हैं। बच्चे अपने पापा से कहते हैं : पापा अब हम यहां नहीं पढ़ेंगे। एक बार अंदर जाकर अपने क्लास के दोस्तों से मिल आएं। बच्चे क्लास की तरफ चले जाते हैं।
प्रिंसिपल : डॉक्टर साहब बताइए। आखिर क्या बात है जो आप बच्चों का नाम कटवाना चाहते हैं।
डॉक्टर साहब खामोश रहते हैं और अब उनकी आंखों में जो सैलाब भरा था वो आखिरकार भर भरा कर बाहर निकल आया था। डॉक्टर साहब कुर्सी को पकड़कर झुक गए और बस रोते जा रहे थे।
प्रिंसिपल ने डॉक्टर के कंधे पर हाथ रखा और कहा : डॉक्टर साहब पहले आप बैठिए और पूरी बात तो बताइए। आखिर हुआ क्या है?
डॉक्टर विनोद गहरी सांस लेते हैं और कुर्सी पर बैठ जाते हैं। प्रिंसिपल भी अपनी चेयर पर बैठ जाती हैं।
डॉक्टर विनोद अपने ऊपर गुजरी बात बतानी शुरू करते हैं।
…फ्लैश बैक…
डॉक्टर विनोद की पत्नी अपने घर में प्रवेश करती हैं। जहां डॉक्टर विनोद डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के इंतजार में बड़बड़ा रहे थे।
डॉक्टर विनोद पत्नी की ओर देखते हैं : अरे यार बेबी बहुत देर करती हो। मुझे आज जल्दी जाना है।
दरअसल डॉक्टर विनोद की पत्नी का नाम बबिता था जिसे डॉक्टर साहब प्यार से बेबी पुकारते थे।
बबिता हाथ में थमी नाश्ते की प्लेट को टेबल पर जोर से पटकती है और कहती है : आपको बस अपने काम की होती है। आज बच्चों के स्कूल में प्रोग्राम है, उसमें आपके साहबजादे का फुटबाल मैच है और आपकी नन्हीं परी एक नाटक में पार्टिसिपेट कर रही है।… शायद ये सब आप नहीं जानते होंगे।
डॉक्टर विनोद नाश्ता करते हुए : हां हां मुझे मालूम है, पर मुझे भी आज बहुत बड़ा मसला हल करने जाना है।
इतना सुन डॉक्टर साहब की पत्नी आंख बुंह चढ़ा लेती है और कहती है : बड़े मसले ही हल करने में लगे रहते हैं, अपने घर का छोटा सा मसला हल किया नहीं जाता।
डॉक्टर साहब एक दम उठते हैं और पत्नी को पीछे से पकड़ लेते हैं और पत्नी को दुलारते हुए कहते हैं : अरे मेरी बेबी आज उसी मसले में जाना है।
पत्नी पलटकर डॉक्टर साहब की शर्ट का कालर पकड़ते हुए कहती है : कौनसी जंग जीतने जा रहे हैं आप।
डॉक्टर विनोद : घर के लिए जमीन की बात होनी है। किराए का घर किराए का होता है, न जाने कब खाली करने को कह दे और अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं।
पत्नी : मगर आप कहां से खरीदेंगे ? आपकी प्रैक्टिस भी कुछ खास नहीं चलती, वो तो आप कमेटियों को इधर से उधर करते रहते हो…
डॉक्टर साहब पत्नी की आवाज को बीच में ही बंद कर देते हैं और कहते हैं : ये कमेटियों का लाखों रुपया घर में पड़ा रहता है, इसी का इस्तेमाल करेंगे।
पत्नी : तो लोगों का कहां से चुकाओगे। अभी कम से कम बच्चे सुकून से दाल रोटी खा रहे हैं और अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं… और आप कोई सरकारी डॉक्टर तो हो नहीं जो सैलरी से अदा कर दोगे, ऊपर से आप पर डॉक्टर की कोई डिग्री भी नहीं है। वो तो बच्चों के नसीब से आपकी प्रैक्टिस अच्छी है।
डॉक्टर साहब आखिरकार पत्नी को समझा लेते हैं और घर में रखे कुछ रूपये लेकर बाहर निकल जाते हैं। पत्नी असहज होकर एक तरफ बैठ जाती है।
शाम का समय था। डॉक्टर विनोद का घर। जिसमें उनके दोनों बच्चे आकाश और नेहा एक तरफ बैठे होम वर्क कर रहे थे। डॉक्टर की पत्नी बबिता किचिन में थी।
डॉक्टर विनोद हाथ में कागज़ का एक फोल्डर लिए घर में दाखिल होते हैं। डॉक्टर साहब को देखकर दोनों बच्चे पापा पापा कहते हुए उनकी तरफ दौड़ पड़ते हैं। किचिन में बबिता के कानों तक डॉक्टर साहब के आने की आवाज पहुंच गई थी। बबिता तो मानो सुबह से ही डॉक्टर को लेकर चिंतित थी। उसके जहन में यह ही सवाल गूंज रहा था कि कहीं डॉक्टर साहब ने जमीन का सौदा न कर लिया हो। बबिता दौड़कर बाहर आ गई और डॉक्टर साहब की ओर नीचे से ऊपर तक देखने लगी। जिस बात का बबिता को डर था उसकी तस्दीक डॉक्टर साहब के हाथ में थमा फोल्डर ने कर दी थी।
डॉक्टर फोल्डर को बबिता को देते हुए कहते हैं : लीजिए बेबी, अब हमारा अपना घर होगा।
ये सुन बबिता के मानो कुछ पल के लिए आंखों तले अंधेरा सा छा गया। मगर उसने अपने आपको संभालते हुए, दबी जुबान से कहा : ये आपने क्या किया?
डॉक्टर : कुछ नहीं सौ गज जमीन का बैनामा है, इसे संभाल कर रखो। कल से भगवान की कृपा से घर बनवाने का काम शुरू कराएंगे।
इसी बीच आकाश और निहा खुशी से झूमते हुए डॉक्टर साहब से आकर लिपट जाते हैं और अपनी अपनी फरमाइशें करने लगते हैं। कोई कहता पापा मेरा कमरा ऐसा होना चाहिए तो कोई कहता पापा मेरे कमरे में यह फैसलिटी होनी चाहिए।
बबिता टकटकी बांध कर यह सब देखती रह जाती है और उसे बोलने का मौका ही नहीं मिलता। उसके दिमाग में बस एक ही बात खाई जा रही थी कि डॉक्टर साहब आखिर इतना बड़ा रिस्क क्यों ले रहे हैं।
उस समय तो बबिता को कुछ कहने का मौका नहीं मिला था। रात को बेडरूम में ( बेडरूम क्या एक ही कमरा था ) बच्चे सो गए थे। बबिता ने करवट बदलते हुए डॉक्टर साहब से कहा : आप ये ठीक नहीं कर रहे, दूसरे के पैसे से आप घर बनाएंगे, आखिर उन्हें देना भी तो है। आप सब घर बनाने में खर्च कर देंगे तो हम कमेटी वालों को कहां से देंगे।
डॉक्टर साहब चेहरा बनाते हुए कहते हैं : आप भी बस भविष्य में चली गईं। वर्तमान समय में सब इसी तरह अपना काम चला रहे हैं और फिर हम किसी की बेईमानी तो नहीं कर रहे। जैसे कमेटी खुलती रहेगी हम व्यवस्था करके देते रहेंगे। एक बार में थोड़ी देना है।
पत्नी बबिता गुस्से से करवट बदल लेती है : आप जाने, आपकी जैसी मर्जी। मेरे बच्चों का नुकसान नहीं होना चाहिए।
डॉक्टर विनोद रात दिन एक करके दो मंजिला मकान तैयार करा लेते हैं। जिसकी बनावट में बीसियों लाख रूपया खर्ज आता है। डॉक्टर साहब ने बिना कुछ सोचे समझे कमेटियों का सारा पैसा मकान में लगा दिया था। यहां तक कि बाहर का भी उधार कर लिया था। साथ ही मकान बनवाने के चक्कर में अपनी प्रैक्टिस भी प्रभावित कर ली थी। क्लिनिक पर मरीज आते तो डॉक्टर साहब वहां नहीं मिलते थे। धीरे धीरे मरीज दूसरी जगह शिफ्ट हो गए थे।
इसी बीच डॉक्टर साहब का मकान बनकर तैयार हो गया था।
आज डॉक्टर विनोद परिवार के साथ मकान में प्रवेश करने वाले थे। इसलिए उन्होंने एक छोटी सी पार्टी रखी थी। जिसमें खास दोस्तों और रिश्तेदारों को पूछा गया था। डॉक्टर साहब का मकान देखकर हर कोई मन ही मन में सोच रहा था कि आखिर डॉक्टर साहब पर रातों रात इतनी दौलत कहां से आ गई। बरहाल ग्रह प्रवेश पार्टी में जमकर खाने दाने चले। बच्चों ने अपने अपने कमरे सैट कर लिए। लेकिन डॉक्टर साहब की पत्नी आलीशान घर में पहुंचकर भी परेशान दिख रही थी। उसके चेहरे पर भविष्य की चिंता साफ नजर आ रही थी।
इधर डॉक्टर साहब की प्रैक्टिस लगभग बंद ही हो गई थी। आमदनी का जरिया बिगड़ गया था। डॉक्टर साहब ने किसी तरह चार पांच महीने काट दिए। उसके बाद कमेटियों टूटने लगीं। लोग उनके दरवाजे पर पैसे मांगने आने लगे। डॉक्टर साहब लगातार लोगों को बहाने बनाकर टाल देते। धीरे धीरे हालात ज्यादा खराब हो गए थे। डॉक्टर साहब ने कर्जदार परेशान न करें इसलिए उन्होंने क्लिनिक पर भी जाना छोड़ दिया था। डॉक्टर साहब केवल एक ही फिराक में लगे रहते कि कहीं से कोई बैंक से कर्जा दिला दे। घर में भी क्लेश होने लगा था। पत्नी भी बार बार अपनी बातों को दोहराती और उन्हें तानते देती कि उसने मना किया था कि ऐसा मत करो। बच्चे भी अंदर ही अंदर कुढ़ने लगे थे और हर समय खामोश रहते। इधर बच्चों के स्कूल की फीस भी कई महीनो से नहीं पहुंची थी।
डॉक्टर विनोद के हालात अब बद से बत्तर हो चले थे। डॉक्टर साहब। भी डिप्रेशन में जाने लगे थे। उधर कर्जदार उन्हें हर पल, हर खड़ी परेशान कर रहे थे। पत्नी ये सब देख अंदर ही अंदर घुट रही थी।
एक दिन डॉक्टर साहब की पत्नी बबिता ने रोते हुए कहा : अब और क्या देखना है। यह ही हालात रहे तो जान पर भी आ सकती है।
डॉक्टर साहब सिर झुकाकर पत्नी की बातें सुन रहे थे और जार जार रो रहे थे।
पत्नी ने कहा : बच्चे बीमार पड़ने लगे हैं, खाने पीने को भी उन्हें नहीं मिल रहा है। ऊपर से घर पर रात दिन कर्जदारों का पहरा है। ऐसे मकान का हम क्या करेंगे।
पत्नी, डॉक्टर साहब का हाथ पकड़ती है और कहती है : आप परेशान न हों। मुझे मालूम है आपने ये सब बच्चों के लिए किया। कोई बात नहीं भगवान को मंजूर नहीं था और फिर हमने दूसरे की दौलत पर ऐश का इंतजाम किया था, जिसे भगवान भी जायज नहीं मानता।
डॉक्टर साहब की आंखों से आंसू बह रहे थे। उनकी पत्नी उन्हें संभालती है और कहती है : हमें दौलत से ज्यादा सुकून चाहिए जो हमारे पास था, लेकिन इस घर ने छीन लिया। आप इस घर को बेच दो और सबका कर्जा अदा कर दो। हम पहले भी किराए पर रहते थे। अब रहेंगे तो क्या।
डॉक्टर साहब फूट फूटकर रोने लगे। बीवी ने उनके आंसुओं को पोंछा और कहा : घबराइए मत, आप आज से ही घर का ग्राहक तलाश करना शुरू कर दें।
डॉक्टर साहब ने मोहल्ले बस्ती और यार दोस्तों में बात फैला दी कि वो अपना मकान बेच रहे हैं। ये सुन कर लोग मजा लेने लगे। कहते कमेटियों का पैसा मारकर महल बनवा लिया था। अब बेचने की नौबत आ गई।
कुछ दिन बाद ही डॉक्टर साहब के मकान का सौदा हो गया। डॉक्टर साहब ने पैसा लेकर मकान खाली कर दिया और फिर से किराए के मकान में आ गए।
मकान बिकते ही कर्जदार उनके यहां आ धमके। डॉक्टर साहब ने सभी का पैसा लौटाया लेकिन फिर भी कम पड़ गया। इस पर डॉक्टर साहब की खूब मजम्मत हुई। मामला लड़ाई झगडे तक पहुंच गया। डॉक्टर साहब ने सभी से कहा कि जब उन्होंने इतना पैसा दे दिया है तो और भी दे दिया जायेगा। किसी तरह मामला शांत हुआ।
अब डॉक्टर साहब का परिवार किराए पर था लेकिन कर्जदार यहां भी कम नहीं हुए। उधर बोर्डिंग स्कूल में उनके बच्चे पढ़ते थे। उनकी भी फीस लगातार टूट रही थी, जिस वजह से बच्चों को स्कूल में फीस ले लिए परेशान किया जा रहा था। हालांकि डॉक्टर साहब के दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत होशियार थे और हर साल क्लास में टॉप आते थे। बच्चे घर आकर बार बार फीस को कहते।
डॉक्टर साहब टूट चुके थे। उनका घर भी चला गया था और कर्जा भी अदा नहीं हुआ था। ऊपर से उनकी प्रैक्टिस भी तकरीबन बंद ही हो चुकी थी। बच्चों की फीस भी हजारों में पहुंच गई थी। डॉक्टर साहब को अब अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था। डॉक्टर यह सब सोचकर परेशान हो रहे थे।
इसी बीच उनके बेटा आकाश पहुंचता है और कहता है : पापा आज आपको स्कूल में बुलाया है, अगर आप नहीं गए तो हमें स्कूल से निकाल दिया जायेगा।
डॉक्टर साहब के पास अब कोई चारा नहीं बचा था। वो बच्चों के साथ स्कूल के लिए निकल पड़े। डॉक्टर साहब रास्ते में सोचते जा रहे थे कि उनकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं है, हजारों की फीस कहां से जमा की जाएगी। डॉक्टर साहब ने रास्ते में मन बना लिया था कि वो आज बच्चों का स्कूल से नाम कटवा देंगे। स्कूल पहुंचते पहुंचते डॉक्टर साहब बहुत परेशान और थकावट से भर गए थे।
फ्लैश बैक समाप्त
डॉक्टर साहब प्रिंसिपल को अपनी कहानी बताते बताते अचेत से हो गए थे।सामने कुर्सी पर बैठी प्रिंसिपल की आखों से आंसू बह रहे थे।
इसी बीच आंखों में आसूं भरे आकाश और निहा पहुंच जाते हैं। डॉक्टर साहब के दोनों बच्चे दोस्तों से मिलकर भाभुक हो गए थे।
डॉक्टर साहब कुर्सी से उठे और भरभरी आवाज से बोले : मैडम आप बच्चों की टीसी दे दीजिए।
प्रिंसिपल अपने आपको संभालती हैं और फोन पे स्कूल प्रबंधक से बात करती हैं। उधर से जवाब मिलता है कि उनके स्कूल में इस तरह की कोई गुंजाइश नहीं है। बच्चों की टीसी काट दी जाए।
प्रिंसिपल कपकपाते हुए अपने हाथों को संभालती हैं और दोनों बच्चों की टीसी काटकर डॉक्टर विनोद को थमा देती हैं।
डॉक्टर विनोद बच्चों का हाथ पकड़ते हैं और रोते हुए प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकल जाते हैं। दोनों बच्चे भी जार जार रो रहे थे।
मोहम्मद नईम
आकाशवाणी जिला संवाददाता बदायूं