Homeदुनियाजलवायु परिवर्तन : हम कितने तैयार हैं?

जलवायु परिवर्तन : हम कितने तैयार हैं?

जलवायु परिवर्तन का मुख्य प्रभाव तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलावों से है। इसके मुख्य स्रोत को सरल भाषा में “ग्लोबल वार्मिंग” भी कहा जाता है! इससे होने वाले बदलाव प्राकृतिक हो सकते हैं, जो सूर्य की गतिविधि में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण हो सकते हैं।
ये वर्तमान युग की सबसे बड़ी चुनौती है, जो हमारे ग्रह और इस पर मौजूद सभी जीवों के अस्तित्व के लिए संकट बन गया है । इसके प्रमाण को नकारा नहीं जा सकता है इसके फलस्वरुप तापमान बढ़ रहा है, हिमखंड, ग्लेशियर और बर्फ की परतें पिघल रही हैं! समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, गर्मी के मौसम में अत्याधिक गर्मी और बरसात में मूसलाधार बारिश की घटनाएं बढ़ती आवृत्ति के साथ हो रही हैं।
कारण –
ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ‘ग्रीन हाउस’ गैस हैं! ग्रीन हाउस गैस, वो गैस होती है जो बाहर से मिल रही गर्मी या उष्मा को अपने अंदर सोख लेती है!
उदाहरण के लिए जिन देशों में अत्याधिक सर्दी पड़ती है उन देशों में पौधों को गर्म रखने के लिए काँच के एक बंद घर में रखा जाता है और उस घर में ग्रीन हाउस गैस भर दिया जाता है! ये गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी को सोख कर पौधों को गर्म रखते हैं! ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है। सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है, इस प्रक्रिया के लिए हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैस का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
अगर ये गैस पृथ्वी पर नगण्य हो जाए तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने में सहायता हो सकती है। ग्रीन हाउस गैसों में सबसे अधिक प्रभावित करने वाली गैस कार्बन डाई आक्साइड (CO2) होती है। इसे हम सभी प्राणी अपने श्वास के साथ उत्सर्जित करते हैं और पेड़ पौधे इसी कार्बन डाई आक्साइड को ग्रहण कर के ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं, जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहता है। पर्यावरण वैज्ञानिकों का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में पृथ्वी पर कार्बन डाई आक्साइड (CO2) गैस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। बड़े स्तर पर जंगल और पेड़ की कटाई से ऐसा परिणाम सम्भव है।जागरूकता अभियान और कुछ शोध –
सन 2006 में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक हॉलीवुड डाक्यूमेंट्री फिल्म बनी थी ‘द इन्कन्वीनिएंट ट्रूथ’ जिसका निर्देशन ‘डेविड गुन्हेम’ ने किया था। इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में ग्लोबल वार्मिंग को एक विभीषिका के रूप में प्रस्तुत किया गया था और मानव जनित कार्बन डाई आक्साइड (CO2) को इसका मुख्य कारण बताया गया था। इस फिल्म ने पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरे विश्व को प्रेरणा देने का प्रयास किया था, जिसे सभी देशों ने सराहा भी था। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ डाक्यूमेंट्री के ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इसके पूर्व में इस त्रासदी से निपटने और सभी को जागरूक करने के लिए सन 1988 में संयुक्त राष्ट्र (UN)के तत्वावधान में ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतरशासकीय दल’ (Inter Government Panel on Climate change) का गठन किया गया था। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से जुड़ी सभी सामाजिक, वैज्ञानिक अनुसंधान और आर्थिक जानकारियों पर शोध करना था।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नैशनल ऐरोनाॅटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने सन 2019 में जलवायु परिवर्तन पर 35 वर्षों का केस स्टडी किया था, जिसमें उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक रीजन सितंबर 1984 और सितंबर 2019 के बीच के सैटलाइट इमेज का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है और बहुत ही चौकाने वाले परिणाम देखे गए हैं। इस शोध के मुख्य वैज्ञानिक क्रिस्टीना पिस्टोन का दावा है कि जो क्षेत्र पूरी तरह से बर्फ से ढके हुए थे वहाँ काफी मात्रा में बर्फ पिघला है और परिणामस्वरूप समुद्र के जलस्तर में हर वर्ष 0.13 इंच की वृद्धि देखी जा रही है।
घातक परिणाम-
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन होने के कारण हर वर्ष पृथ्वी का तापमान औसत से अधिक बढ़ रहा है, इसके परिणामस्वरूप समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा और बहुत से तटीय शहर जलमग्न हो जाएंगे। भारी तबाही का अनुमान है और ये तबाही किसी विश्व युद्ध की तरह या किसी उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के बराबर हो सकते हैं।
रोकने के उपाय –
सड़क पर वाहनों से निकलने वाले धुएं पर नियंत्रण करने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले इंजन को ही लाइसेंस मिले।भारत सरकार ने 01 अप्रैल 2020 को इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए ‘भारत स्टेज-6 (BS-6)’ इंजन को ही पूरे देश में लागू करने का निर्णय लिया था जिससे कार्बन डाई आक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम से कम हो सके।
कोयले से बनने वाली बिजली का उपयोग कम से कम किया जाना चाहिए। इसके विकल्प के रूप में अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर कार्य करने की आवश्यक्ता है, उदाहरण के तौर पर पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पनचक्की जैसे रिन्यूवेबल एनर्जी पर निर्भर होना पड़ेगा।
औद्योगिक क्षेत्र में चिमनी से निकलने वाले हानिकारक गैस के उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
आज के आधुनिक युग में हम सभी फ्रिज, एयर कंडीशन समेत विभिन्न कूलिंग मशीन का अत्याधिक ईस्तेमाल कर रहे हैं, इस पर निर्भरता कम करनी होगी।
अधिक से अधिक वृक्ष लगाने की कोशिश करनी होगी और जितना हो सके पेड़ पौधे का संरक्षण करना होगा। पेड़ और जंगल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं और प्रकृति से संतुलन बना कर रखते हैं।

विजय सिंह,
बलिया (उत्तर प्रदेश)

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