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मिशन के नाम पे कमीशन खाते नेता और सरकार, सिर्फ सत्ता और मत के लिए हो रहा देश का व्यापार

क्या है ये मिशन?
जब भी कोई चीज देश में या कोई भी जगह पर चुनौती पूर्ण लगे तो उस जगह पर एक खास प्रकार का आयोजन करके उसे एक रूप दिया जाता है। और वह काम जिस तरह का हो उस तरह के विशेषज्ञ की निगरानी और सलाह से यह मिशन आगे चलता हे और अपना ध्येय साधता हे। जैसे की सरकार की सारी योजनाएं एक मिशन का ही रूप है।
क्यों होता हे देश के लिए जरूरी मिशन?
कोईभी देश के लिए घर में राशन पहुंचाने से लेकर युद्ध के सामान खरीदने के कोई भी निर्णय हो वो सब बहुत जरूरी हे। क्योंकि हरेक मिशन में या योजना में देश का पैसा और शक्ति खर्च होती हे अगर उसमें कुछ भी गड़बड़ी हुई तो उसका खामियाजा अंत त: देश को या तो आर्थिक रूप से या तो सार्वजनिक रूप से भुगतना पड़ता हे।इसलिए पढ़ाई से लेकर मिशन मंगल तक के सारे मिशन देश के लिए बहुत जरूरी और फायदेमंद होते है।
कैसे होती हे मिशन की परिकल्पना क्या है उसके हाल?
आप कोईभी मिशन उठालो उसमें 4 चीजें सामने आती हे। एक मिशन बनाने वाला, दूसरा उसको लागू करने वाला और तीसरा उसका रखरखाव करने वाला और चौथा उसका उपयोग करने वाला! इस चारों में से कोई भी 1 में गड़बड़ी या नीति साफ न हो तो मिशन कभी भी पूरा नहीं होता बस वो चलता ही जाता हे। जैसे की वर्तमान में सबको राशन , सब को घर , किसानों को समय पे बिजली युवाओं को योग्य रोजगार और कितनी सारी योजनाएं जो धरी की धरी ही रह गई और उसका ग्राफ बढ़ ही रहा हे।यानी की उसका मतलब साफ हे की किसी भी सरकार ने जो इस सारे मिशन के वहन करती हे लेकिन कही न कही उसमें कमी रह गई हे और वह अपने नतीजे पर पूरी तरह से नहीं पहुंची है।
हमारे देश में योजनाएं और उसके नतीजे!
अभी पिछले कुछ सालों से इन योजनाओं और उसकी परिकल्पना ही ऐसे बनती हे जिसके नतीजे पहले से तय होते है।यानी की सरकार कोईभी मिशन ले के आती हे तो उसकी कमिशन पहले से पक्की ही होती हे। उसके भी 4 पहलू हे एक तो मतदारों को आकर्षण , दूसरा कॉरपोरेट जगत के लिए स्पेशियल जो चुनाव के दौरान पक्ष को फंड दे सके, तीसरा अपने ही नेता और कार्यकर्ता की जिसको उसका फायदा दे सके और चौथा देश और विदेश में दिखावा करके अलग अलग प्रकार की लोन लेने के लिए?
अब इस मिशन के पैसे कहा से आते है?
आप देखते ही होंगे की हर राज्य और उसकी सरकारे अपने अपने नेताओ की फोटो सारी योजना और मिशन में लगा के रखती हे जो की वह सिर्फ और सिर्फ उसके अभिकर्ता हे लेकिन सबसे ज्यादा दिखावा उसका ही होता हे। लेकिन सही बात तो यह है की यह सारे योजना और मिशन के पैसे पहला प्रजा के टेक्स , दूसरा देश या विदेश के लोन , तीसरा पब्लिक फंडिंग से आते है! यानी की सरकार या नेता कोईभी पक्ष का हो वो सिर्फ उस योजना का रख रखाव ही करता हे लेकिन सारा क्रेडिट वो ले जाते है।
इसकी पूरी जिम्मेवारी किसकी?
अगर कोई भी मिशन हो तो उसकी पूरी जिम्मेवारी उस मिशन को लागू करनेवाली सरकार की ही रहती हे। वही उसकी निगरानी रखती हे और वह काम ही उसका हे। लेकिन हमारे यहां यह चीज में उल्टी गंगा बह रही हे। अगर कोई मिशन सफल होता हे तो वह हमने किया हमने किया के नारे लगते हे और क्रेडिट लेने दौड़े चले आते है। लेकिन कोई ग़फ़ला पकड़ा जाए तो वह तो कॉन्ट्रैक्टर या प्रजा या तो वह मिशन परिवहन करने वाले व्यक्ति पर दोष लगा दिया जाता हे। यानी कि यहां के मिशन में चित भी मेरी और पट भी मेरी वाला हाल है।
अभी के मिशन में कमिशन और लालच की भरमार और उससे फैला देश में भ्रष्टाचार!
जी हा अब 95% मिशन में कोईभी पक्ष लागू करता है उसमें कही न कही लालच और अपने खुद के पक्ष या उसके गुर्गों की लालच पूरी करने के लिए ही आते हे। में दावे के साथ यह लिख रहा हु के देश की कोईभी सरकार यह लिखित में दे के मैने या मिशन के साथ जुड़ी हुई हरेक कड़ी ने यह मिशन बिना भ्रष्टाचार किए पूरे किए हे उसकी लिस्ट दे में उसमें से भ्रष्टाचार निकाल के दिखा दूंगा। क्योंकि अभी मिशन लागू करने वाले , उसे वहन करने वाले और उसका लाभ लेने वाले सभी अपना अपना फायदा देख रहे हे जिससे सब की कड़ी एक दूसरे से जुड़ती हे। और देश और देश प्रेम और सारी सही और सनातन नीति धरी की धरी रह जाती हे। बस अपना काम हो गया थोड़ा आपको मिला थोड़ा मुझे मिला और थोड़ा बिचौलिया खा गया फायदा तो सब का हुआ बस नुकसान देश को हुआ यह कोई नहीं सोचता हे इसलिए चुनाव प्रचार में भी ऐसे कमिशन वाले मिशन की और उसके प्रचार की आपको भरमार देखने को मिलेगी।
सरकारे,नेताओं और पक्ष को यह सोचना जरूरी हे क्या आप भारतीय कहने लायक हो आप देश चला रहे हो या पक्ष!
आज कल फ्री में देने की या ज्यादातर लोगों को लाभ दे कर मत लेने की एक फैशन हो गई हे। जो कि चुनावी वादों में साफ दिख रहा हे। कोई भी प्लानिंग के बिना 1 पक्ष ने कोई योजना में 1000 देने का वादा किया तो वहीं दूसरा 1200 का वादा करेगा। यहां तक तो ठीक हे लेकिन जैसे जैसे पक्ष के चेले और उसमें जुड़ने वाले लोग बढ़ते हे ऐसे ऐसे योजनाओं का व्याप और उसमें बहे गए पैसे और नई नई योजनाएं उन लोगों के लाभ के कारण निकाली जा रही हे। जिसमें देश की संपति को सीधी तरह से नुकसान हो रहा हे और विदेशी कर्ज लेने की नौबत आती हे वह भी टैक्स कलेक्शन में इतना बढ़ावा करने के बावजूद भी।तो सारे पक्ष और नेताओं को अपने गिरेबान में झाक कर देखना होगा की आप पक्ष चलाने के लिए प्रतिनिधित्व कर रहे हो या देश को चलाने के लिए।क्या सही में आपके फैसले और योजना देश हित में ही हे या सिर्फ और सिर्फ पक्ष हित में और जो भी बड़े बड़े नेता यह करके अपनी सता टीका रखे हे वह याद रखे के जब इतिहास लिखा जाएगा तब आपका नाम उसमें काले अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इतिहास तो युग पूरा होने के बाद ही लिखा जाता है।देश के युवाओं और में भी हो चुका हु इसका भोग
जी हा इस मिशन कमिशन वाले सरकारी नेतागिरी के खेल का में और कितने सारे युवा बली चढ़ जाते हे ज्यादातर युवाओं को तो यह पता भी नहीं चलता जैसे के में 12 साल पहले जो सरकारी दफ्तर में जॉब करता था वह ई ग्राम मिशन की थी। और उसमें सरकार ने इसके देखरेख और मैनपावर को पूरे करने के लिए कंपनी हायर की थी। जिसको सरकार 1 बंदे का 11500 देती थी वहीं कंपनी हमे सिर्फ 4500 और कही जगह 4000 का मासिक वेतन ही देती थी और यह भी तब की बात हे जब हमारा देश का प्रधान सेवक गुजरात के मुख्यमंत्री थे। ऐसे कितने मिशन हे जो आज भी ऐसे ही चल रहे है।असर उपाय और सही नीति से देश को फायदा
अगर सही में कोई भी सरकार को देश की पड़ी हे तो पहले तो जो मुफ्त या कमिशन वाले मिशन हे वो तत्काल रूप से तब तक के लिए बंद कर दे जब तक वह राज्य या देश कर्ज कम न हो जाए। दूसरा सरकार और नेताओं को हर मिशन की खुद जिम्मेवारी लेनी चाहिए और बिचौलिए और कंपनी प्रथा को बंध करना होगा क्योंकि देश का नागरिक सरकार और नेता को देख कर मत देता हे बिचौलियों को नहीं।तीसरा प्रजा को भी लोभ और लालच वाले जालसाज से परे रहकर देश के लिए मत देना चाहिए। जैसा राजा वैसी प्रजा की नीति छोड़ देनी चाहिए क्योंकि कोई भी लाभ का पैसा एक तो देश का हे और क्या पता के आपको शायद वो लाभ आपके देश या राज्य पर कर्जा बढ़ाकर भी मिला हो। तो उससे बड़ा कोई पाप नहीं यह समझकर चले तो यह सारा खेल खत्म हो जाएगा और हमारा देश अपने आप ही आगे बढ़ेगा। बस दिल , दिमाग और नियत साफ हो तो कोई मिशन की नहीं लेकिन सिर्फ और सिर्फ ईमानदारी की ही जरूरत रहेगी।

प्रतीक संघवी
राजकोट गुजरात

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