Homeदेशबजट तो आ गया लेकिन कर्ज का हिसाब?

बजट तो आ गया लेकिन कर्ज का हिसाब?

सरकारों ने खड़ा कर दिया कर्ज का मायाजाल,
हकीकत में ज्यादातर राज्यों के हाल हे बेहाल।।

लेखक – प्रतिक संघवी राजकोट
हमने और आप सब ने केन्द्र और अपने अपने राज्यों के बजट और उसके लाभ और गैरलाभ सोच रखे होंगे। बजेट ने आपको बहुत कुछ दिखाया गया यहां तक के रुपिया आएगा कहा से और जाएगा कहा लेकिन आज हम ऐसी गंभीर विषय में जानकारी देना चाहते हे कि जिससे देश के सारे लोगों को परोक्ष रूप से असर पड़ता हे। और बहुत सारे राज्यों के ऐसे हालत हे कि बजेट से ज्यादा यह चीज हे उनके ऊपर और उसको कोईभी तरीके से नजर अंदाज नहीं करना चाहिए वह हे राज्य का बकाया यानी की राज्यों की देनदारी या उसका कर्ज।। तो आज हम जानेंगे हर राज्य के कर्ज के बारे में?
जानिए आपके राज्य के ऊपर कितना हे कर्ज ?
अगर हम कर्ज का विवरण राज्य वाइज देखने जाए तो आर बी आई के स्टेटमेंट 19 अंतर्गत 2007 से लेकर 2025(BE) यानी की 2025 तक के आंकड़े हे जो नीचे दिए हे। और जो करोड़ में हे।

  1. आंध्र प्रदेश का कर्ज 2007 में 90,456.4 करोड़ से लेकर 2025 में 562557.2 करोड़।
  2. अरुणाचल प्रदेश का कर्ज 2,371.2 करोड़ से लेकर अब 25,464.3 करोड़।
  3. असम का कर्ज 19,489.8 करोड़ से लेकर 177983.2 करोड़।
  4. बिहार का कर्ज 49,846 करोड़ से लेकर 361522.3 करोड़।
  5. छत्तीसगढ़ का कर्ज 14,041.5 करोड़ से लेकर 163266.1 करोड़।
  6. गोवा का कर्ज 5,841 करोड़ से लेकर 35,723.6 करोड़
  7. गुजरात का कर्ज 90,955.7 करोड़ से लेकर 494435.9 करोड़।
  8. हरियाणा का कर्ज 29,308.0 करोड़ से लेकर 369241.5 करोड़।
  9. हिमाचल प्रदेश का कर्ज 18,141.6 करोड़ से लेकर 102593.7 करोड़।
  10. झारखण्ड का कर्ज 19,049.2 करोड़ से लेकर 134867.4 करोड़।
  11. कर्नाटक का कर्ज 58,078.5 करोड़ से लेकर 725455.5 करोड़।
  12. केरल का कर्ज 52,318.1 करोड़ से लेकर 471091.3 करोड़।
  13. मध्य प्रदेश का कर्ज 52,731.1 करोड़ से लेकर 480976 करोड़
  14. महाराष्ट्र का कर्ज 160740.8 करोड़ से लेकर 812068.2 करोड़।
  15. मणिपुर का कर्ज 4,185.4 करोड से लेकर 19,917.3 करोड़।
  16. मेघालय का कर्ज 2,819.4 करोड़ से लेकर 23,145.2 करोड़।
  17. मिजोरम का कर्ज 3,353.7 करोड़ से लेकर 14,201.4 करोड़।
  18. नागालैंड का कर्ज 3,224.9 करोड़ से लेकर 20,196.9 करोड़।
  19. ओडिशा का कर्ज 42,937.8 करोड़ से लेकर 154960.3 करोड़।
  20. पंजाब का कर्ज 51,009 करोड़ से लेकर 378453 करोड़।
  21. राजस्थान का कर्ज 71,172.8 करोड़ से लेकर 637035.1 करोड़।
  22. सिक्किम का कर्ज 1,409.1 करोड़ से लेकर 19,037.8 करोड़।
  23. तमिलनाडु का कर्ज 68,561.4 करोड़ से लेकर 955690.5 करोड़।
  24. तेलंगाना का कर्ज 2007 में राज्य नहीथा लेकिन अब 442297.9 करोड़।
  25. त्रिपुरा का कर्ज 4,624.5 करोड़ से लेकर 26,607.3 करोड़।
  26. उत्तर प्रदेश का कर्ज 167775.7 करोड़ से लेकर 857844 करोड़।
  27. उत्तराखंड का कर्ज 13,308 करोड़ से लेकर 95,407.9 करोड़।
  28. पश्चिम बंगाल का कर्ज 124153.3 करोड़ से लेकर 714195.6 करोड़।
  29. जम्मू और कश्मीर का कर्ज 19,672.6 करोड़ से लेकर 87,086.7 करोड़।
  30. एनसीटी दिल्ली का कर्ज 25,568.7 करोड से लेकर 15,881.1करोड़।
  31. पुडुचेरी का कर्ज 2,168.5 करोड़ से लेकर 14,113.1 करोड़।

राज्यों में लगी देनदारियां बढ़ाने की होड जानिए आपका राज्य कितने गुने की और इस तरह ऊपर के आंकड़े से साफ जाहिर हे कि सभी राज्य और उसका सिस्टम कर्ज के आंकड़े बढ़ाने में लगा हे और जैसे की एकदूसरे में कर्ज बढ़ाने की होड लगी हो। ऐसे राज्यों ने पिछले 18 सालों में कई गुना कर्ज की बढ़ोतरी दर्ज की हे जो नीचे दी गई हे।

  1. आंध्र प्रदेश 6.2 गुना
  2. अरुणाचल प्रदेश 10.7 गुना
  3. असम 9.1 गुना
  4. बिहार 7.3 गुना
  5. छत्तीसगढ़ 11.6 गुना
  6. गोवा 6.1 गुना
  7. गुजरात 5.4 गुना
  8. हरियाणा 12.6 गुना
  9. हिमाचल प्रदेश 5.7 गुना
  10. झारखण्ड 7.1 गुना
  11. कर्नाटक 12.5 गुना
  12. केरल 9.0 गुना
  13. मध्य प्रदेश 9.1 गुना
  14. महाराष्ट्र 5.1गुना
  15. मणिपुर 4.8 गुना
  16. मेघालय 8.2 गुना
  17. मिजोरम 4.2 गुना
  18. नागालैंड 6.3 गुना
  19. ओडिशा 3.6 गुना
  20. पंजाब 7.4 गुना
  21. राजस्थान 9.0 गुना
  22. सिक्किम 13.5 गुना
  23. तमिलनाडु 13.9 गुना
  24. तेलंगाना _ राज्य नही था
  25. त्रिपुरा 5.8 गुना
  26. उत्तर प्रदेश 5.1 गुना
  27. उत्तराखंड 7.2 गुना
  28. पश्चिम बंगाल 5.8 गुना
  29. जम्मू और कश्मीर 4.4 गुना
  30. एनसीटी दिल्ली 0.6 गुना
  31. पुडुचेरी 6.5 गुना
    और सभी राज्यों की औसतन 7.4 गुना बढ़ी हे।

ऐसे देखे तो सबसे ज्यादा तमिलनाडु का कर्ज 13.9 गुना बढ़ा हे और पूरे देश में दिल्ली का कर्ज ही थोड़ा कम हुआ हे।
कितने राज्यों की स्थिति अति गंभीर और बजेट से ज्यादा कर्ज।
बहुत सारे राज्य ऐसे हे की जिसके वार्षिक बजेट का जो फिगर हे उससे भी ज्यादा कर्ज हे। यानी कि गुजरात में देखे तो 370000 करोड़ का बजेट आया हे लेकिन उसके सामने कर्ज ही 494435.9 करोड़ जितना हे। तो यह ज्यादातर राज्यों के हालात हे। और यह राज्यों की अति गंभीर परिस्थिति को दर्शाता हे।
भविष्य में यह देश के लिए विस्फोटक और अभी टेक्स के लिए!
आज कल 2035 में यह कर देंगे 2047 में यह हो जाएगा ऐसे ऐसे सपने दिखाकर हकीकत से हम मुंह नहीं मोड़ सकते क्योंकि जो कर्ज के आंकड़े हे वो पिछले कई सालों में कई गुना बढ़ने लगे हे और सामने बजट में आपको ब्याज के आंकड़े भी दिख जाते हे। तो सोचो की इसका असर आज हमें टेक्स और दंड के रूप में आ रहा हे जो भविष्य में देश और उसकी संपति पर भी असर कर सकता हे। और सही तरीके से ध्यान न रखा गया तो यह कर्ज देश को डूबा देगा और विस्फोटक स्थिति में लाकर खड़ा कर देगा।
क्या हे उपाय? क्यों नेताओं को नहीं आनी चाहिए नींद?
अगर आपके घर पे किसी भी प्रकार का कर्ज हो और वह बढ़ता ही चला जाता हे तो क्या आपको नींद आएगी। ऐसे ही इस आंकड़े को देखकर हमारे देश के नेताओं को नींद कैसे आती हे वो समझ में नहीं आता जब कोई कुछ उल्टा सीधा कह दे तो बताने लगते हे पूरे राज्य के नेता है तो यह भी उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। फिर भी हमारे सभी राष्ट्रवादी कहलाते नेताओं को नींद कैसे आती है?। अब इसके लिए पहले तो सभी राज्यों और केंद्र सरकार को जो पैसे का व्यय हो रहा हे उसका ध्यान रखकर पहले तो सरदारजी और गांधीजी की तरह करकसर करके अपने मुफ्त के लाभ बंध करने होंगे और बचत बढ़ानी होगी साथ ही अपने ही लोगों को पावर और पैसे वाला बनाने की जो नीच सोच हे जिससे सता बनी रहे वह भी छोड़नी होगी और सही को सही बताना होगा। साथमे वह सारी योजनाएं जो सिर्फ और सिर्फ वोट और उसके बदले।में अपने आदमी और वोटर को नोट के रूप में जाती है वह बंध करनी चाहिए या तो एफीडेविट देना चाहिए के यह योजना में 1 रुपए का भी भ्रष्टाचार नहीं होगा।और जरूरत के मुताबिक ही करोड़ों और खरबों के प्रोजेक्ट या योजनाएं लागू करनी चाहिए तो ही हम इस में सुधार ला कर कर्ज से बाहर निकल पाएंगे। वरना यह सब विश्वगुरू के सपने कर्ज तले दब जाएंगे और सिर्फ और सिर्फ सच्चाई सामने आते ही हम धरे के धरे रह जाएंगे जब सामने आएगा तब वह नेता और उसके सागरीतो ने तो मोज शौख करके पैसे उड़ा दिए बादमें देश और उसकी संपति बेचने की नौबत आएगी। अगर कोई भी राज्य यह कदम नहीं उठाए तो न्यायालय को आगे आकर इसका पक्ष लेना होगा वरना यह कर्ज भविष्य में हमे डुबो देगा।

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