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भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे मुख्यमंत्री

राजनीति में सचमुच अब भ्रष्टाचार का पानी सिर से ऊपर पहुंच गया है। सियासी दलों के नेता, विधायक ही नहीं अब तो सीधे-सीधे मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे हैं। कुछ मुख्यमंत्री तो जेल की सजा काट चुके हैं। राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक और बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव, अन्ना द्रमुक की नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे मधुकोड़ा जैसे नाम इनमें शामिल हैं। गंभीर आरोपों की बात करें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू और पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी भी आरापों में घिरे हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी जमीन घोटाले में घिर गये हैं। राज्यपाल थावर चन्द्र गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। यह मामला मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी (एमयूडीए) से जु़ड़ा है। मामला 1992 का है जब सिद्धरमैया डिप्टी सीएम हुआ करते थे।
कर्नाटक जमीन घोटाला मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलेगा। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। वह जमीन के मामले में फंसे हुए हैं। बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता।
केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे। इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है। ऐसे में उनकी इसमें भूमिका न हो ऐसा हो ही नही सकता। सीएम सिद्धरमैया ने मामले में किसी भी भूमिका से इनकार करते हुए कहा था कि अगर उनकी नीयत में खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे। अगर कुछ गलत था और नियमों की अनदेखी हुईं थी तो बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने उनकी पत्नी को प्लॉट्स क्यों दिए? सिद्धारमैया पहले ही कह चुके हैं कि वह इस मामले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी। उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था लेकिन 1998 में अधिग्रहीत भूमि का एक हिस्सा एमयूडीए ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था। यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी।
सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा जमीन के एक टुकड़े को खरीदा था। इस समय कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी। उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था। ऐसे में एमयूडीए से हक की लड़ाई शुरू हुई। साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। उनके परिवार की तरफ से जमीन की अर्जी को उन तक पहुंचाया गया लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे। 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची, तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे। बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार में 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया था। मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी, उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा एमयूडीए ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने अब आरोप लगाया कि उन्हें फर्जी तरीके से जमीन आवंटन के मामले में अनावश्यक रूप से निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि उनके खिलाफ इसलिए साजिश रची जा रही है, क्योंकि वह पिछड़े वर्ग समुदाय से आते हैं और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। आरोप है कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) ने मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती को पाश इलाके में करोड़ों का भूखंड दिया है। हालांकि, दस्तावेजों में बताया गया है कि पार्वती के स्वामित्व वाली करीब चार एकड़ जमीन के अधिग्रहण के बदले उन्हें पाश इलाके में यह प्लॉट दिया गया है। भाजपा इस वैकल्पिक जमीन आवंटन को अवैध बता रही है। सिद्धरमैया की ओर से यह प्रतिक्रिया तब सामने आई है, जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने इस जमीन घोटाले के खिलाफ 12 जुलाई को सिद्धरमैया के गृह जिले मैसुरु में महा प्रदर्शन का एलान किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि क्या हमने एमयूडीए घोटाला जांच के लिए आदेश नहीं दिया है। भाजपा राजनीति के लिए ये सब चीजें कर रही है। अगर वे राजनीति करते हैं, तो हमें भी राजनीति करनी होगी। जमीन आवंटन को लेकर भाजपा द्वारा उनकी पत्नी को निशाना बनाने के बारे में पूछे जाने पर सिद्धरमैया ने कहा कि उन्हें बताना पड़ेगा कि यह कहां अवैध है। हम कह रहे हैं कि चीजें कानूनी हैं।
वहीं, भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी अंजारिया को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह एमयूडीए घोटाले का स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला शुरू करें, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी लाभार्थी के तौर पर शामिल हैं। भाजपा नेता सी टी रवि ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के बचाव को बेईमानी करार दिया है।
बहरहाल कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को तगड़ा झटका लगा है। इससे पूर्व 187 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के मामले में आदिवासी कल्याण एवं खेल मामलों के मंत्री बी. नागेंद्र को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया था। प्रदेश के एक सरकारी निगम से जुड़े अवैध धनराशि ट्रांसफर मामले में आरोपों से घिरे अनुसूचित जनजाति (एसटी) कल्याण मंत्री बी नागेन्द्र ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया। इसे सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली एक वर्ष पुरानी सरकार के लिए करारा झटका माना जा रहा था। मंत्री नागेंद्र ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा पत्र सौंपा और कहा कि वह इस मामले में निष्कलंक होकर सामने आएंगे। कर्नाटक महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम लिमिटेड से संबंधित यह अवैध धनराशि ट्रांसफर मामला उस वक्त सामने आया जब उसके लेखा अधीक्षक चंद्रशेखर पी ने 26 मई को आत्महत्या कर ली। चंद्रशेखर ने सुसाइड नोट छोड़ा था। इस नोट में निगम के बैंक खाते से 187 करोड़ रुपये के अवैध ट्रांसफर का खुलासा किया गया था। इस रकम में से 88.62 करोड़ रुपये कथित रूप से जानी-मानी आईटी कंपनियों के विभिन्न खातों एवं हैदराबाद के एक सहकारी बैंक में डाले गए थे। चंद्रशेखर ने नोट में निगम के निलंबित प्रबंध निदेशक जेएच पद्मनाभ, अकाउंट ऑफिसर परशुराम जी दुरूगन्नवार, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की मुख्य प्रबंधक सुचिस्मिता रावल के नामों का उल्लेख किया था। उन्होंने नोट में कहा कि मंत्री ने फंड ट्रांसफर का मौखिक आदेश दिया था। चार बार के विधायक नागेन्द्र (52) ने कहा, ‘इस्तीफे के लिए किसी ने मेरे ऊपर दबाव नहीं बनाया। मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर खुद से इस्तीफा देने का फैसला किया है, ताकि लोगों को मेरे बारे में गुमराह नहीं किया जाए।’ युवा सशक्तीकरण एवं खेल मंत्रालय का भी प्रभार देख रहे नागेन्द्र ने कहा कि वह किसी भी रूप में प्रदेश के मुख्यमंत्री (सिद्धरमैया) या उपमुख्यमंत्री (डीके शिवकुमार) या पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को शर्मिंदा नहीं करना चाहते हैं। अब तो मुख्यमंत्री सिद्धरमैया स्वयं ही एमयूडीए घोटाले में गर्दन तक डूबे नजर आ रहे हैं।

अशोक त्रिपाठी

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