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लापता लेडीज फिल्म को आस्कर में भेजने की घोषणा से वाल्मीकि समाज खुशी की लहर

फिल्म में बाल्मीक बस्ती के अर्जुन सिंह ने किया अभिनय

लखनऊ। गोरैय्या बाग वाल्मीकि बस्ती के निवासियों को खुशी की बात है कि लापता लेडीज फिल्म में अर्जुन सिंह ने अभिनय किया है इस फ़िल्म के लिए भारत सरकार द्वारा ऑस्कर में भेजने की घोषणा हुई है। यह जानकारी चंदन लाल वाल्मीकि सोशल वर्कर ने दी है। इस खबर से देश के वाल्मीकि समाज में खुशी की लहर है। लापता लेडीज फिल्म की मुख्य विषय वस्तु पर्दे/घुंघट के कारण दुल्हनों की अदला बदली तो है ही लेकिन एक और महत्वपूर्ण पहलू पर दर्शको और समीक्षकों का बहुत कम ध्यान गया है। वह है दहेज प्रथा।
जया के खलनायक पति प्रदीप कुमार के पिता की भूमिका निभाने वाले ‘अर्जुन सिंह’ के लिए यह फिल्म एक बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में है। फिल्म के आरंभ में ही भले ही वह कुछ समय के लिए नजर आते हैं लेकिन बहुत ही सौम्यता और प्रभावशाली ढंग से उन्होंने भूमिका निभाई है। इस फिल्म की मुख्य किरदार जया के खलनायक पति प्रदीप कुमार के पिता दहेज लोभी तेज तर्रार पत्नी के विचारों को अपनी मौन स्वीकृति देते हैं। बेटे की शादी करके आते हुए गर्वित पिता की भूमिका बहुत ही सहजता से अर्जुन सिंह निभाया है।
अर्जुन सिंह का मानना है कि फिल्म में रोल कितना बड़ा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है ऐसी फिल्म से जुड़ना जो एक सार्थक विमर्श को जन्म देती है। समाज के संवेदनशील विषय को दर्शाती फिल्म से जुड़ना उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है और अब जब यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर सबसे ज्यादा देखी और सराही जाने वाली फिल्म बन चुकी है, भारत की ओर से ऑस्कर में जा चुकी है तब इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्जुन सिंह की फिल्म के चयन की समझ और विषय की पकड़ बहुत सुलझी हुई है। इससे पहले अर्जुन सिंह फिल्म डिवीज़न ऑफ़ इंडिया द्वारा निर्मित ‘वीर चंद्र सिंह गढ़वाली’ पर बनी डॉक्यूमेंट्री में वीर चंद्र के गुरु की भूमिका निभा चुके हैं।
अर्जुन सिंह एक सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं वर्तमान में वह बिजनौर में जिला सहकारी बैंक लिमिटेड में प्रबंधक पद पर कार्यरत है। बचपन से ही कला और रंगमंच में उनकी विशेष रुचि रही स्कूल कॉलेज में भी समाज को सही दिशा और मार्गदर्शन देने वाले नाटकों में कार्य किया। दहेज प्रथा जाति भेद भ्रष्टाचार आदि जैसे अनेक विषयों पर उन्होंने नाटकों द्वारा समाज में जागृति लाने का प्रयास किया।
यह निसंदेह है गौरव की बात है कि उनका कला प्रेम इतना मजबूत था कि वह परिवार को चलाने के लिए नौकरी भी करते रहे और संघर्ष भी। उनकी पहली ही फिल्म आमिर खान के प्रोडक्शन और किरण राव के निर्देशन में बनी हो यह काम गौरव की बात नहीं है।
उनकी पहली फिल्म ने ऑस्कर में प्रवेश कर इतिहास रचा है। जिनकी बॉलीवुड में ना कोई अप्रोच है और ना कोई जानने वाला है अपने संघर्ष के दम पर अर्जुन सिंह ने इतनी महत्वपूर्ण फिल्म में अपनी मौजूदगी दर्ज कर करके बहुत से संघर्षरत कलाकारों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। ‘लापता लेडीज’ को प्रसिद्ध असमिया निर्देशक ‘जाह्नु बरुआ’ की अध्यक्षता वाली फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की 13 सदस्यीय जूरी द्वारा भारत की ओर से ऑस्कर में भेजने की घोषणा की है।
भारत की ओर से जूरी ने इस फिल्म को चुनते हुए यह कहां है कि “लापता लेडीज ऐसी फिल्म है जो ने केवल भारत में महिलाओं को बल्कि वैश्विक स्तर पर भी आकर्षित कर सकती है उनका मनोरंजन कर सकती है और उन्हें अर्थपूर्ण बन सकती है।” जूरी के शब्दों में- भारतीय महिलाएं अधीनता प्रभुत्व का एक अजीब मिश्रण है।’ इस साल विभिन्न भारतीय भाषाओं में बनी 29 फिल्मों को पीछे छोड़कर यह फिल्म ऑस्कर की दौड़ में शामिल हुई है।
समिति ने 97वें ऑस्कर पुरस्कारों में भारत की ओर से जिन फिल्मों पर विचार किया गया उनमें से कुछ नाम – कल्कि 2898 ई., आतम, ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट, वाज़हाई, थंगलान, चंदू चैंपियन, सैम बहादुर, स्वातंत्र्य वीर सावरकर, मैदान और जोराम आदि नाम इनमें प्रमुख थे। ‘लापता लेडीज’ भारत की ओर सेसर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म श्रेणी के लिए विश्व के अन्य 52 देश से आई हुई फिल्मों से मुकाबला करेगी। भारतीय सिनेमा मनोरंजन के अलावा आरंभ से फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं अंधविश्वास असमानता जैसे संवेदनशील विषयों को अपने फिल्मों का कथावस्तु बनाता रहा है।
‘लापता लेडीज’ महिलाओं आपके प्रति होने वाले लैंगिक भेदभाव और रुढ़ीगत परंपराओं की सामान्य से दिखने वाली विषय वस्तु को दो महिला चरित्र के माध्यम से बहुत ही प्रभावशाली तरीके से पेश किया है। जहां एक और भारतीय महिलाएं नासा से लेकर इसरो तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है। जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है तो दूसरी ओर रूढ़िवादी समाज में महिलाएं आज भी लापता सी जिंदगी से बाहर निकालने के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं।
फिल्म की कथा टिकी है कुछ दुल्हनें ट्रेन के एक ही डब्बे में बैठी हुई है उनमें से दो दुल्हनों जया और फूल की अदला बदली हो जाती है। क्योंकि वह घुंघट में अपना पूरा चेहरा छुपाए हुए हैं। रात का टाइम है, अंधेरा है, ट्रेन रूकती है सोते हुए यात्री जाकर हड़बड़ी में उठकर उतर जाते हैं।
यह घुंघट मात्र चेहरा छुपाने का जरिया नहीं है बल्कि एक सामाजिक रूपक के रूप में प्रयोग किया गया है। पूरी फिल्म एक सस्पेंस बनाए रखती है लेकिन साथ ही दोनों दुल्हनें अपने अपने विश्वास सच्चाई और संघर्ष के साथ जटिल परिस्थितियों से बाहर आती है साथ ही अपनी अस्मिता पहचान और प्रतिष्ठा को बचाने के संघर्ष में दर्शकों के मन पर कुछ महत्वपूर्ण सवाल छोड़ जाती हैं।

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