हमें त्योहारों की पवित्रता नहीं खोनी चाहिए
आजकल एक बहुत बड़ा दिखावे का धर्म चलाया जा रहा है। जिसमे मूल धर्म और उस त्योहारों की महिमा को नष्ट कर एक अपनी ही मोजशोख की लालच को धर्म का रूप दे दिया गया है। जिसमे ज्यादातर युवाओं और समाजिक आगेवान और धर्म के ठेकेदार शामिल हो रहे हे। अभी अभी जो नवरात्री आई है उसमे आपको यह साफ देखने को मिलेगा। जहा ज्यादत्तर माताजी की स्थापना , अर्चना , पूजा पाठ शक्तियों को ग्रहण करना और त्याग और तप की भावनाओं को तार तार कर सिर्फ नाच गान चलेगा यह ज्यादातर बड़े बड़े शहरों की बात हो रही है। और उसमे भी वेस्टर्न कल्चर आ गया है हमारे गुजरात में चनिया चोली पहने यह डांस करते हैं लेकिन मर्यादा के लिए रखी चुनी को यहां ज्यादातर लोग ने गायब ही कर दिया जो आपको सोशीयल मीडिया की रील्स में दिख जाएगा।और अब तो ज्यादातर शहरों में धर्म के नाम पे माताजी के नाम पे 11 या 12 दिन तक यह नग्न नाच चलता है। जिसमे न तो मान मर्यादा का पता रहता है और न कोई धर्म कर्मका और नही तो त्योहारों के मूल रूप और उसके महत्व का इन लोगो के लिए त्योहारों बस सिर्फ और सिर्फ मोज सोख के लिए आते है ।
यहाँ बहुत सारी जगह पे पास सिस्टम चालू हो गई है जिसका भाव 1200 से लेकर 15000 तक रहता है। जिसमे खाने पीने और खेलने की सुविधा दी जाती है। जिसमे आयोजक , सरकार और केटर्स वाले बहुत अच्छा कमाई कर लेते है। लेकिन इसके पीछे धार्मिक आस्थाएं जुड़ी रहती है। सब लोग अपने अपने जात को लेकर अब यह नवरात्री का त्योहार मनाने लगे है। हालाकि किसिभी माताजी की पूजा अर्चना में कही भी कोई जात पात का उल्लेख नहीं है। वहा अधर्म और असुरों का नाश और धर्म को मजबूत बनाने का ही उल्लेख है। उससे भी ज्यादा आगे बढ़े तो कितने पास में यह साफ उल्लेख है की 12 से 40 साल तक की लड़की या महिला को पास फ्री?!! या कही जगह ऐसा हे की महिला को पास फ्री और ज्यादातर जगह महिलाओं का पास का रेट कम है। इसका सीधा अर्थ क्या निकलता है की जितनी इस उम्र की स्त्री सामिल होंगी उतने सामने दूसरे लोग ज्यादा सामिल होंगे। इसके अलावा इसका कोई उपयोग नहीं। और हमारी कुछ कुछ अति अंध भक्ति में लीन प्रजा इसमें शामिल भी हो जाती है और उससे भी ज्यादा यह अपने शोख को ही धर्म बना लेती हे। और कही आयोजनों में तो कोई दूसरे धर्म की लड़की आ सकती है लेकिन लडको को ने एंट्री यह कोन सा नियम है यह आप लोग समझ ही गए होंगे। और इन सब जो ऐसे आयोजनों में सामिल होते है इन सब लोगो से में यह प्रार्थना करता हु के आप सिर्फ अपने धर्म और माताजी को पहले जानिए उसको मानिए उसके सिद्धांत और उसके ऊपर से बनाए गए इस पर्वो की महत्व को समझिए उसका तमाशा मत बनाए।
पहले और अभी भी पारंपरिक रास में जो गुजरात की धरोहर और पूर्णत धार्मिक है वो 10 से 12 वजह तक ही चलते हे। जिसमे बीच में माताजी के गढ़ की स्थापना होती हे और आस पास लड़किया और लड़के भी शामिल हो तो अलग अलग उन स्थापित माताजी के आस पास घूम के और उसके अनुरूप ही रास या गरबा गा कर उसकी भक्ति और आराधना करते हे। एक से एक बहतर रास प्रस्तुत करते हे जैसे मसाल रास, तलवार रास , डोरी रास और कितने ऐसे रास और गरबे पूरे पारंपरिक वेशभूषा से चले आ रहे हे और लोग उसे देखने आते है।
लेकिन यह जो पास सिस्टम रखी है वहा माताजी साइड में एक मंडप के पास रहते हे पहले 5 या 10 मिनिट उसकी आरती होती है। बाद में यह डिस्को और दिखावा चलाया जाता है। जिसमे न तो गरबा रहता है न तो परंपरा । वहा सब अपने हिसाब से ग्रुप में सर्कल बनाके डांस करते हे एक दूसरे के दिखावे की स्पर्धा करते हे। और वह ग्रुप के सर्कल में माताजी की जगह इन लोगो के जूते , चपल, पानी की बॉटल और पर्स की स्थापना होती हे। कही कही जगह तो वहा स्त्री की आबरू यानी की दुप्पटा बीच में रहता है। और उनके आसपास उनके ही लोग यह डांस और नाच गान करते हे।
धर्म कर्म निश्चित करो सुनके समय पुकार
आया यहा किसलिए यह तो करो विचार
अब आप सबको यह सोचना है की आप धर्म के पक्ष में है या उसको नष्ट करने के पक्ष में या उसको साथ देनेवाले पक्ष में और दूसरा की यह भी सभी गावो और शहरों में कई जगह अभी भी पारंपरिक रूप से रास होते है गरबे घूमते है। और कई कई संस्थाएं ऐसी भी हे जो इन परंपरा को बढ़ावा देने के लिए तत्पर है और जो भी शहर के अपने मोहल्ले में ऐसी पारंपरिक गरबीया करवाना चाहता हो उसे वह सभी रूप से मदद भी करते है। यानी की उसको स्टेप सिखाना , लाइटिंग और साउंड और गानेवाले की भी वह व्यवस्था कर देते है। जो इस कलियुग में अधर्म के पड़ते भारी प्रभाव के बीच भी एक जीती जागती मिसाल है और में और सभी सनातनी उस सब आयोजको को तहे दिल से वंदन करते रहे।
अब हमे यही करना है की अगर आप धर्म के पक्ष में हे तो हमे आज से यह प्रण लेना है कि-
हम अपने आप को इन पवित्र दिन के अनुसार शास्त्रोक्त विधिओं को फॉलो करेंगे।
हम ऐसे अधर्म के आयोजन में शामिल नही होंगे।
जहा भी मौका मिले वहा हम इस अधर्म का अपनी शक्ति के हिसाब से विरोध करेंगे।
हम हररोज सोसीयल मीडिया में ऐसी पोस्ट का विरोध जारी रखेंगे।
अगर कहीं भी अश्लील आयोजन धर्म के नाम पे होता है हम उसकी शिकायत करेंगे।
हमे यह भी पता होना चाहिए की हमारे धर्म को कोई मिटा नही सकता लेकिन हमारे धार्मिक मान्यताएं बदल कर मूल धर्म से दूर किया जा सकता है। और ऐसा हम हरगिज नहीं करेगे और दूसरो को भी सही राह दिखाएंगे।
याद रखना मेरे दोस्तो की कोईभी धर्म में कहीं भी दिखावा नहीं होता और जहा दिखावा होता है वहा धर्म नही होता। क्योंकि हमारे ऋषि मुनि भी तपस्या करने के लिए धर्म को पाने के लिए एकांत वास ही पसंद करते थे। तो हम भी अपने से हो सके उतनी माताजी की पूजा , अर्चना आराधना करके अपनी शक्तियों को आत्मसात करे और गलत दिखावे से दूर रहे।
प्रतिक संघवी
राजकोट गुजरात