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नेताओं की डोर भी बाबाओं के हाथ और जनता की डोर भी बाबाओं के हाथ

आखिर देश में विकास की गाड़ी कितनी तेज दौड़ेगी?

नेताओं की डोर भी बाबाओं के हाथ और जनता की डोर भी बाबाओं के हाथ, देश में विकास की गाड़ी कितनी तेज दौड़ेगी? जनता भी अपना धन बाबा के यहां चढ़ना चड्ढा आते हैं और नेता भी अपनी राजनीति चमकाने के लिए बाबा के यहां चक्कर लगाते नजर आते हैं।
पिछले लेख में हमने देखा था कि कैसे बाबाओं की वजह से आम लोग उनके शिष्य नहीं बल्कि उनके शिकार बन जाते हैं। आम लोग निकलते तो हैं एक गुरु की तलाश में, जो उनके जीवन से जुड़ी परेशानियों का सही हल निकाल सकें, उनके मुश्किलों में उन्हें सही रास्ता दिखा सके, मगर उन्हें गुरु के वेश में ऐसे बाबा मिलते हैं जो उन्हें मानसिक गुलाम बनाकर उनका शोषण करने लगते हैं।
इन बाबाओं का शिकार कमजोर और गरीब लोग ही नहीं बल्कि बड़े बड़े व्यवसाई और राजनेता भी होते हैं। हर बड़े व्यवसाई घराने में कोई न कोई बाबा उनके पारिवारिक बाबा अवश्य होते है, जिनकी सलाह से वह अपना व्यवसाय चलाते हैं। बाबा ग्रह नक्षत्र की दशा और दिशा का हवाला देकर, उसका उपाय और व्यापार का शुभ घड़ी बताते हैं और इसके बदले उनसे मोटी रकम वसूलते हैं। यही हाल भारत की राजनीति में भी है। शुरू से भारत की राजनीति में इन बाबाओ का अच्छा खासा वर्चस्व रहा है। कई बाबा जेल की सलाखों के पीछे भी जाते रहते हैं फिर भी आम लोग या पैसे वाले लोग इन लोगों की चपेट में आते रहते हैं। यह लोग समझ ही नहीं पाते हैं कि बाबा और गुरु में जमीन आसमान का अंतर होता है। गुरु हमेशा हमें सही मार्गदर्शन कराते हैं जबकि बाबा हमसे मोटी रकम वसूल कर हमारा दिशा निर्देश करते हैं। हमारे देश में आजादी के बाद हमेशा से ऐसे बाबा होते रहे हैं जिनकी पकड़ जितनी ज्यादा जनता पर होती है उतनी ही ज्यादा पकड़ नेताओं पर भी होती है। नेताओं को वोट दिलवाने में इनकी अहम भूमिका होती है। बाबा आम जनता पर अच्छी खासी पकड़ बनाकर रखते हैं तो नेताओं को स्वत ही इनके शरण में जाना पड़ता है। इन बाबाओं के लिए चित भी मेरी, पट भी मेरी वाली कहावत सार्थक होती है। तभी तो वह खरबों की संपत्ति जमा कर लेते हैं। जनता के साथ-साथ नेताओं को भी अपने कब्जे में ले लेते हैं। इसीलिए जल्दी इन बाबाओं का कोई बाल बांका नहीं कर पाता है। बाबा कानून के साथ भी एक खिलवाड़ करते हैं। काफी मशक्कत के बाद यह बाबा जेल के सलाखों के पीछे जाते हैं। भारत की राजनीति में समय समय पर इन बाबाओं का वर्चस्व देखने को मिलता रहा है।
चंद्रास्वामी का नाम कई वर्षों तक भारतीय राजनीति से जुड़ा रहा। उनकी शख्सियत कैसी थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर तो उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव का सबसे नज़दीकी सलाहकार माना जाता था। तो दूसरी तरफ उन पर राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप भी लगा था। कई देशों के शासनाध्यक्षों से मधुर संबंध, हथियारों की दलाली, हवाला का कारोबार, विदेशी मुद्रा अधिनियम का उल्लंघन जैसे कई संगीन आरोपों से भी चंद्रास्वामी सुर्खियों में रहे। कहा तो यह भी जाता है कि पी.वी. नरसिम्हा राव के पांच साल के प्रधानमंत्रित्व काल में चंद्रास्वामी को कभी भी प्रधानमंत्री से मिलने के लिए पहले से अप्वाइंटमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। उनका जब भी मन होता था वह प्रधानमंत्री कार्यालय में बिना रोक टोक के जाते थे। बाद में सरकार तो बदल गई लेकिन चंद्रास्वामी का दबदबा कम नहीं हुआ। यह सिलसिला चंद्रशेखर के छोटे-से कार्यकाल के दौरान भी बना रहा। तब भी चंद्रास्वामी के दरबार में हाजिरी लगाने वाले नेताओं और नौकरशाही में कमी नहीं आयी।
उसी तरह आसाराम बापू उर्फ आसूमल थाऊमल सिरुमलानी 450 से अधिक छोटे-बड़े आश्रमों के संचालक रहे हैं। उनके शिष्यों की संख्या करोड़ों में थी। इनके दरबार में भी हाजिरी लगाने वाले नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी थी। नाबालिग लड़की का कथित यौन शोषण करने का आरोप लगने के बाद आरोपों की आँच उनके बेटे नारायण साईं तक को भी पहुंची। न्यायालय ने उन्हें 5 साल तक न्यायिक हिरासत में रखने के बाद 25 अप्रैल को नाबालिग से रेप के मामले में उम्रकैद की सजा दी। फ़िलहाल आसाराम जोधपुर जेल सलाखों के पीछे कैद हैं।
गुरमीत राम-रहीम ने डेरा में रहते हुए ही फिल्मों व संगीत में भी हाथ आजमाया। वर्ष 2014 में उसका पहला म्यूजिक एलबम हाइवे लव चार्जर के नाम से रिलीज हुआ। इसके बाद उसने वर्ष 2015 में फिल्मों में भी प्रवेश किया और पांच फिल्मों का निर्माण किया जिनमें उसने खुद ही नायक की भूमिका निभाई। वह पीछे के रास्ते से राजनीति में उतरने की योजना बना रहा था। एक समारोह के दौरान उसने गुरु गोविंद सिंह का वेश भी धारण किया। सिख संगठनों ने विरोध किया तो उसने बाद में माफी मांग ली। हालांकि यौन शोषण के आरोपों ने अंत में उसे जेल पहुंचा दिया।
सतपाल महाराज व उनके प्रमुख शिष्य चुनावों के दौरान कई बार हरियाणा में आ चुके हैं तथा मतदाताओं से राष्ट्रीय हित में मतदान की अपील करते रहे हैं। कांग्रेस में रहते हुए सतपाल महाराज केंद्र में मंत्री रहे। वहीं भाजपा ने पहले उनकी पत्नी अमृता रावत व बाद में खुद महाराज को उत्तराखंड में मंत्री पद का जिम्मा सौंपा। फिलहाल भाजपा ने सतपाल महाराज को स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया है।
हरियाणा की राजनीति को कुछ हद तक प्रभावित करने वालों में रोहतक के अस्थल बोहर स्थित बाबा मस्तनाथ मठ के महंत बाबा बालकनाथ, गुरुग्राम के पटौदी स्थित हरि मंदिर आश्रम के संचालक स्वामी धर्मदेव व कुछ अन्य भी हैं। स्वामी धर्मदेव हालांकि एक बार चुनाव लड़ने के बाद प्रत्यक्ष राजनीति से तौबा कर चुके हैं। लेकिन उन्हें मार्गदर्शक मानने वाले नेताओं व भक्तों की कोई कमी नहीं है। बाबा बालकनाथ को तो भाजपा ने अलवर के लोकसभा चुनाव मैदान में उतार दिया था। इनके गुरु महंत चांदनाथ अलवर से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। गत उनके निधन के बाद ही बालकनाथ ने गद्दी संभाली थी। सितंबर 2017 में जब उनका निधन हुआ था तब तीन राज्यों के मुख्यमंत्री उनके आश्रम में पहुंचे थे।
बालकनाथ की भी उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ में पूरी आस्था है। इसके अलावा भी प्रदेश में ऐसे कई आश्रम व गुरुकुल हैं, जो राजनीति के मिजाज को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। बाबा के एक भक्त से जब सवाल किया तो जवाब आया- “म्हारौ तो महाराज कहैगो उत बोट दयांगा।”
अब सोचने वाली बात यह है, इन बाबाओं का वर्चस्व इतना ज्यादा है कि ये राजनीति को भी अपनी मुठ्ठी में रखते है। जनता के साथ-साथ नेता जी भी इनके ही कंट्रोल में रहते हैं, तो भला इनका व्यापार तो फलना फूलना है ही। बस हम आम जनता ही नहीं समझ पा रहे कि ये बाबाओं का चक्कर सिर्फ और सिर्फ हमारा दोहन कर सकते हैं, हमारा कल्याण नहीं। हमारा कल्याण तब होगा जब हमारा भरोसा खुद पर होगा और हम सामाजिक नीति नियमों के अनुसार नैतिक नियमों के अनुसार चलेंगे।हमारी तरक्की स्वत ही समाप्त होगी, हमें इन ढोंगी बाबाओ के शरण में जाने की आवश्यकता ही नहीं होगी।

सुनीता कुमारी
पूर्णियां बिहार

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