“राजनीति भोज” एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग अक्सर राजनीतिक में बार बार किया जाता है और भोज हमेशा राजनीतिक फ़ायदे के लिए आयोजित किया जाता है न कि, जनता के फायदे के लिए ।इस भोज का आयोजन राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है, जिसमें नेता, पार्टी सदस्य, या अन्य राजनीतिक लोग एकत्र होते हैं। इस तरह के भोज आमतौर आए दिन विभिन्न पार्टियों के द्वारा आयोजित की जाती है मगर, वर्तमान में इस भोज में बढ़ोतरी हुई है, वर्तमान में अलग-अलग नामों से राजनीतिक भोज का आयोजन किया जाता है। अब बिहार में ही देख लिजिए,बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है विभिन्न पार्टियों के द्वारा अपने-अपने विशेष क्षेत्र में चुनावी प्रचार को लेकर एवं अन्य विभिन्न कार्यों को लेकर कार्यवाही शुरू हो चुकी है और इसका प्रमाण मकर संक्रांति में दही चुरा पार्टी को लेकर देखी गई। लगभग सभी नेताओं के द्वारा चाहे वो एमपी,एम एल ए हो, शहर के मेयर हो , चाहे वर्तमान हो या भूतपूर्व हो सभी ने अपने आवास पर मकर संक्रांति की दही चुरा पार्टी रखी और अपने नजदीकी कार्यकर्ताओं और वोटरों को लुभाने का हर संभव प्रयास किया। राजनीति में शायद यह कहावत सत्य है “जहां नाम है वही काम है “राजनीति में नाम बिकता है इसलिए इस तरह के भोज का आयोजन किया जाता है,ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा खा सके और नाम ले सके। पहले राजनीति भोज में सिर्फ कार्यकर्ता और नेतागण होते थे मगर अब जो भोज होता है उसमें आम पब्लिक भी शामिल होते हैं।
आजकल होली दिवाली मकर संक्रांति सब पर राजनीतिक भोज का आयोजन किया जाने है लगा है ताकि, लोकल जनता इन पार्टियों के बहाने नेताओं से जुड़ी रहे । हद तो तब है कि, सभी नेता अपने कास्ट को लेकर अपनी जाति को लेकर पार्टी का आयोजन करते हैं जिसमें वह अन्य लोगों से ज्यादा अपनी जाति के लोगों को प्रमुखता देते हैं ताकि उनकी जाति का वोट बैंक तगड़ा बना रहे लोग पार्टी में खाएंगे तो निश्चय ही वोट तो देंगे ही ।जिसका नमक खाया जाता है उसके प्रति वफादार भी रहा जाता है यह भारत की परंपरा रही है।
वर्तमान में इस तरह के भोज का आयोजन बड़े पैमाने पर हो रहा है और पैसा भी पानी की तरह बहाया जा रहा है ।
राजनीति भोजों में अक्सर पैसे और संसाधनों का दुरुपयोग किया जाता है, खासकर जब यह चुनावी समय में आयोजित होते हैं। ऐसे भोजों में अनौपचारिक सौदेबाजी और वादों का आदान-प्रदान किया जा सकता है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
अब तो इस किस्से में अपना देश और राजनीतिज्ञ और भी आगे बढ़ गए हे क्योंकि अब तो वह सब चीजों के खर्चों में भी अपने ही आदमी को रखते हे या अपना खुद का उस विषय का बिजनेश चालू कर उसमें भी कमिशन खोरी और भ्रष्टाचार कर हे।और यह जग जाहिर हे की जब राजनीतिक भोजों में अत्यधिक धन खर्च होता है, तो यह सार्वजनिक संसाधनों का अपव्यय माना जा सकता है। यह पैसा बेहतर कल्याणकारी योजनाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में लगाया जा सकता था, नेताओं को बस वोट और पब्लिक सपोर्ट चाहिए।
इस तरह के भोज का आयोजन आजकल चुनाव में प्रचार प्रसार का बड़ा माध्यम बन गया है।इस तरह के राजनीतिक भोज देश के प्रत्येक राज्य में आयोजित किया जाने लगा है चुनावी प्रचार का बहुत बड़ा माध्यम बन गया है, इस पर चुनाव आयोग की नजर भी अबतक नहीं पड़ी है और नेताओं का प्रचार कार्यक्रम भी आसानी से चल रहा है।
चंद्रकांत सी पूजारी
गुजरात