पहलगाम में पाप हुआ है,
अब प्रतिशोध निभाना है ।
आतंकवाद के कीड़ों को,
सही उपचार दिलाना है ।।
घुसपैठियों का आह्लाद है ये,
मजहब का उन्माद है ये।
भारत के स्वर्ग में रक्त बहाना,
भीषण अत्याचार है ये ।।
पर्यटकों का दोष नहीं था,
फिर भी उनको मार दिया।
उनके पत्नी और बच्चों को,
तुमने बहुत लाचार किया।।
सिंधु जल सन्धि के जरिए,
हमने उनकी प्यास बुझाई।
वीरान पड़े उन खेतों में,
हमने जल की राह बनाई ।।
तुमने बहुत मक्कारी कर दी,
हमसे ही ग़द्दारी कर दी।
हम भी अपना वार करेंगे,
बहुत बेकार की यारी कर ली ।।
मासूमों को मारा तुमने,
सिर्फ मजहब के नाम ।
कलमा पढ़वा-पढ़वा कर के,
किया घिनौना काम ।।
एक बूंद पानी को भी,
अब तुमको तरसाएंगे।
सिंधु के जल को अपने,
खेतों में ही बरसाएंगे ।।
राजनयिक दुकानों पर भी,
अब जल्दी से ताले जड़ दो।
भारत के पावन धरती को,
अब जल्दी से खाली कर दो ।।
हमने बहुत इरादे कर ली,
डिप्लोमेटिक बातें कर ली।
समझौता एक्सप्रेस चलवा कर,
अपनी कोशिश जियादे कर लीं ।।
राजदूतों के तंबू को हमने,
दिल्ली से उखाड़ दिया।
विजय! राष्ट्र सुरक्षित करने को,
हमने वीजा फाड़ दिया।।
सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए,
हमने पहले भी समझाया था।
सार्क देशों को यहाँ बुलाकर,
पहले भी दिखलाया था।।
तुम भी देखोगे भारत का,
अब एक नया तराना है।
पहलगाम में पाप हुआ है,
अब प्रतिशोध निभाना है।
प्रस्तुति – विजय सिंह,
बलिया (उत्तर प्रदेश)