जया पार्वती व्रत का हिंदू त्योहार महिलाओं के बीच काफी महत्व रखता है। यह एक 5-दिवसीय उपवास उत्सव है जो भारत के उत्तरी हिस्सों, खासकर गुजरात में महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। उत्सव और व्रत मूल रूप से देवी पार्वती के अवतार देवी जया के साथ जुड़ा हुआ है। जया पार्वती व्रत 5 दिनों का त्योहार है जो आषाढ़ महीने में मनाया जाता है। यह पर्व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को शुरू होता है और 5 दिनों के बाद कृष्ण पक्ष में तृतीया तिथि पर समाप्त होता है। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत का पालन अच्छे पति की कामना के लिए करती हैं जबकि विवाहित महिलाएँ इस व्रत को वैवाहिक आनंद और अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह व्रत, यदि एक बार शुरू किया जाता है, तो इसे लगातार 5, 7, 9, 11 या 20 वर्षों तक किया जाना चाहिए।
जया पार्वती व्रत कब है 2024?
हिंदू कैलेंडर 2024 के अनुसार, जया पार्वती व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि 19 जुलाई को शुरू होगा और श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि 24 जुलाई को समाप्त होगा।
जया पार्वती व्रत का महत्व-
महिलाएं जया पार्वती व्रत को एक अच्छे पति की कामना और अपने विवाहित जीवन में खुशी और प्यार को बनाये रखने के लिए करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं उन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत परिवार की खुशहाली और घर में सुख-समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। भक्तों की सभी इच्छाऐं और आकांक्षाएं पूरी होती है यदि वे भक्ति के साथ जया पार्वती व्रत का पालन करते हैं।
जया पार्वती व्रत – अनुष्ठान और पूजा विधि
जया पार्वती व्रत देवी जया के प्रति श्रद्धा दर्शाने के लिए मनाया जाता है। जो श्रद्धालु इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें 5 दिनों तक नमक के साथ भोजन करने से बचना चाहिए। इस अवधि के दौरान गेहूं और कुछ सब्जियों के उपभोग से भी बचना चाहिए।
इस व्रत के पहले दिन, जवार या गेहूं के बीज एक छोटे मिट्टी के बर्तन में लगाए जाते हैं और घर में पूजा के स्थान पर रखे जाते हैं। फिर, भक्त 5 दिनों तक लगातार इस बर्तन की पूजा करते हैं। गेहूं के बीज वाले बर्तन को, रोज पूजा के समय पानी पिलाया जाता है। सिंदूर को रुई के फाहे से बने हार की तरह लगाया जाता है जिसे नगला के नाम से जाना जाता है। तब इसे बर्तन के किनारों के आसपास रखा जाता है।
व्रत के अंतिम दिन, जो महिलाएं जया पार्वती व्रत का पालन करती हैं, वे जया पार्वती जागरण का भी पालन करती हैं। इस दिन की रात में, वे पूरी रात जागकर भजन और भक्ति गीत गाती हैं और आरती करती हैं। यह रात्रि जागरण अगले दिन तक किया जाता है जिसे गौरी तृतीया के रूप में मनाया जाता है, जब यह 5 दिवसीय उपवास पूर्ण हो जाता है।
जागरण के अगले दिन, बर्तन से गेहूं घास को बाहर निकाला जाता है और पवित्र नदी या किसी अन्य जल निकाय में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके बाद पूजा की जाती है और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है, जिसके बाद, महिलाएं अनाज, सब्जियां और नमक युक्त पौष्टिक भोजन खाकर व्रत तोड़ती हैं।
अंतिम दिन जब जयापार्वती व्रत समापन होता है, पूजा में भाग लेने वाली प्रत्येक महिला को यह कहानी अवश्य सुननी चाहिए। जयापार्वती व्रत के उत्सव के पीछे एक बहुत प्रसिद्ध कथा है। यह एक ऐसी दंपति की कहानी है जिन्हें माता पार्वती के आशीर्वाद से काफी लंबे समय के बाद संतान की प्राप्ति होती है।
एक बार एक निःसंतान दंपति थी और उन्होंने माता पार्वती से लगातार लगभग बारह वर्ष तक संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। एक दिन, माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें एक निश्चित शिवलिंग की पूजा करने के लिए कहा, जो जंगल में निर्जन पड़ा था।
वह पति-पत्नि बेहद खुश हुए और शिवलिंग की खोज के लिए जंगल में चले गए। एक लंबी खोज के बाद, आखिरकार उन्हें वह शिवलिंग मिल गया इसके बाद पति पूजा-प्रार्थना के लिए कुछ फूल लेने के लिए गया। उसे एक सांप ने काट लिया और उसकी पत्नी को फिर से माता पार्वती से प्रार्थना करनी पड़ी। वह प्रकट हुई, उन्होनें उस औरत के पति को फिर से जीवित किया और अंततः उन्हें एक संतान की प्राप्ति हुई।
यह दोनों माता पार्वती की जीवन भर पूजा करते रहे और जयापार्वती व्रत की उत्पत्ति की यही कहानी है अतः इस कथा को जयापार्वती व्रत के पांच दिनों के समय में पढ़ा या सुना जाना चाहिए।
निष्कर्ष-
मान्यता के अनुसार एक उचित जयापार्वती व्रत का समापन आपको माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकता है। वह सर्जन करने वाली हैं जो हमारी स्त्रीत्व ऊर्जा के विकास में और जीवन के लिए जिम्मेदार है। यदि आप भी अपने जीवन की एक या एक से अधिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए उनके आशीर्वाद की आशा करते हैं, तो आपको इन 5 दिनों की अवधि में माता पार्वती की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
देश के उत्तर पश्चिमी भाग में, जयापार्वती व्रत उन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जहां लोग लंबे समय तक प्रार्थना करते हैं और व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान वे पूरे दिन के लिए भोग (प्रसाद/भोजन) और फूल चढ़ाते हैं, भजन और भक्ति गीत गाते हैं।
महिलाएं सख्ती से इन पांच दिनों के लिए नमक का सेवन नहीं करती हैं, और जयापार्वती व्रत के दौरान भोजन में गेहूं और नमक का सेवन नहीं किया जाता है। जयापार्वती व्रत समापन के एक हिस्से के रूप में, जयापार्वती व्रत की कथा सुनें, और फिर आरती करके पूजा समाप्त करें। जयापार्वती व्रत की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद, आपको ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और कुछ दान और दक्षिणा (धन और कुछ प्रसाद) भेंट करनी चाहिए, फिर ब्राह्मण का आशीर्वाद लें और आशीर्वाद के लिए उनके चरण स्पर्श करें।
व्रत के दौरान यदि आपने मिट्टी को हाथी बनाया है, तो सुनिश्चित करें कि दिन के आखिरी समय में हाथी को किसी नदी या जलाशय में विसर्जित कर दें। इस तरह से जयापार्वती व्रत समापन पांच दिनों के दौरान अपार सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करता है।
गरिमा सिंह
अजमेर राजस्थान