Homeधर्महिन्दू धर्म का परम शुभ दिवस "अक्षय तृतीया"

हिन्दू धर्म का परम शुभ दिवस “अक्षय तृतीया”

अक्षय तृतीया का पर्व छत्तीसगढ़ में अक्ती के नाम से बड़े जोरशोर और उत्सवपूर्ण माहोल में मनाया जाता है। इसदिन छोटे बच्चों द्वारा गुडडे गुड़िया की शादी रचाई जाती है। शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि अक्ती के दिन किया जाने वाला शुभ कार्य अक्षय होता है। इसी लिये लोग इस दिन गरीबों को दान दक्षिणा देकर पुण्य लाभ कमाते है। पीने के पानी का प्याऊ भी कुछ लोगो द्वारा इसी दिन खुलवाया जाता है। अक्षय तृतीया को पितरों को तर्पण भी किया जाता है। इसको त्रेतायुग का प्रांरभ भी माना जाता है । इसलिये इसे युगादी तिथि भी कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया को ही भगवान परशुराम का जन्म दिवस भी माना गया है। अक्षय तृतीया को मिटटी के गुडडे गुडडियों का विवाह कुंवारी लड़कियो द्वारा किया जाता है। इस दिन सर्व कार्य सिध्द होने से स्वयं ही आज का दिन एक सुयोग मूहूर्त होता है। खासकर छत्तीसगढ़ अंचल में ही आज का दिन एक सुयोग मूहूर्त होता है। खासकर आज का दिवस खास महत्वपूर्ण माना जाता है। वैवाहिक कार्यों के लिये  शहर में तथा गांवो में ही जगह जगह  शादियों की धूम रहती है। वहीं बच्चों द्वारा गु़डी़या गुडडी की शादी में भी घर घर उत्साह का माहौल रहता है। शादी ब्याह का गूढ़ार्थ समझे बगैर बच्चे अपने गुडडे गुडडियो के शादी निपटाते हैं। दो सहेलियां मिलती है तो एक गुडडा ले लेती है और उसे दूल्हा बनाती हैं। दूसरी  सहेली गुडडी लेकर उसे दुल्हन बनाती है। और दोनों सहेलियां मिलजुलकर रचा डालती है अपने अपने गुडडे गुडडियों की शादियां । पहले इस दिन लोग मिटटी के पुतले बनाकर उसे वस्त्र पहनाकर गुडडे एवं गुडियां का रुप प्रदान करते थे। अब समय बदलने के साथ अक्ती का रुप भी बदल गया है। बाजार मे अब रेडीमेंड दुल्हा दुल्हन (गुडडा गुड़िया) बच्चों द्वारा इन्हे अपने घरों में खरीदकर अपने छोटे मंडप सजाये जाते है। इस मंडप मे तेल, हल्दी, मंगरोहन, मौर, कंकन, करवा, कलश, एवं दहेज आदि – सभी सामान मौजूद रहता है। सारी व्यवस्थाएं बिल्कुल वास्तविक विवाह के समान रहती है और ऐसे ही गुडडे – गुडडियो का विवाह सम्पन्न करा दिया जाता है।
इस अवसर पर घर के बड़े बुजुर्ग भी एकदम तटस्ट नहीं रह पाते बल्कि दर्शक होते हुये भी उनका मार्ग निर्देशन संपूर्ण संस्कार एवं क्रियाकलापो को पूरा करवाने के समय बच्चो को मिलता रहता है। अक्षय तृतीया के दिन भारत भर में हजारो लाखों की तादाद में शादियां निपटाई जाती है। गुडडे गुडडियो के साथ सचमुच को शादियो का भी नजारा सर्वत्र छाया रहता है। ग्रामीण परिवेश में एक गलत परंपरा के निर्वाह के लिये इस दिन अवयस्क बच्चो की शादिया भी हजारो की तादाद में कराई जाती है। जो नियम कानून का उल्लंघन तो है ही साथ ही साथ गलत परंपरा भी है। अवयस्क बच्चों का विवाह करना पूरी तरह से अवैध होता है। खैर अब धीरे-धीरे ही सही इस समस्या और गलत परंपरा पर अंकुश लगाते जा रहा है। ग्रीष्म ऋतु का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार अक्षय तृतीया को ही माना जाता है। हिन्दू वर्ष नववर्ष के अनुसार वर्ष का प्रथम त्यौहार  का दर्जा भी इसे प्राप्त है। वहीँ इस दिन से विवाह कार्यों   को प्रारंभ करने की परंपर भी लोगो मे व्याप्त है। छत्तीसगढ़ मे बाल विवाह की रस्में इसी दिन पूरी की जाती है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बैशाख शुक्ल तीज के दिन गांवो मे किसानो द्वारा मनाया जाने वाला पर्व “अक्ती” नये फसल एवं नवसंवतोत्सव का त्यौहार है। इसमें कुछ विभिन्नता क्षेत्रों के अलग- अलग भागो में पाई जाती है जैसे खैरागढ़ क्षेत्र मे किसानों द्वारा इस दिन तिवरा, मसूर, चना, उड़द, महुआ को फोड़कर लाई बनाया जाता है फिर इन्हे परसा के पत्तो  से बने पांच दोनों में रखकर भगवान के समक्ष पूजा किया जाता है। वही पर प्रतिकात्मक रुप से धान छांटकर लोहे (नागर) से जोता जाता है। दूसरे क्षेत्र मे लोग मिटटी की हुण्डी में पानी भरकर उसे मिटटी के तीन दलो के ऊपर रखते हैं। हंडी से पानी रिसने के बाद जो दल पहले भिगेगा उसके अनुसार कई क्षेत्रो मे आभाष सावन भादो मे व जिस महीने में अच्छी – वर्षा होगी उसका अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार वैशाख सुदी तीन अक्ती का यह – पर्व भारतीय संस्कृति के घटक के रुप में परम शुभ दिन व आस्था के साथ मनाया जाता है। कहते है इसी दिन से मटका (मिटटी की) पूजा कर उसका प्रयोग प्रारंभ किया जाना चाहिये।
गुरु ब्राहमण आदि को मटका दान देने की प्रथा भी प्रचलित है। इस शुभलग्न बेला मे प्रयागराज गया जी से पितृ गणो का नायगा विधान के माध्यम से अंतिम श्राद्ध देकर मोक्षगति प्रदान करने का भी दिवस अक्षय तृतीया के दिन माना गया है। वैदिक महत्व के रुप मे देखे तो हमे ज्ञात होगा की इस अवसर पर कन्यादान का विशेष महत्व माना गया है। कन्या का दान महादान के रुप हिन्दू धर्म मे प्रतिष्ठित है। जिसे काठ की या मिटटी की गुड़िया (कन्या) का विवाह विधिविधान से रचाकर उसका कन्यादान कर महादान का पुण्य प्राप्त किया जाता है इसी दिन से किसान अपने खरीफ फसल के शुरुवात के लिये खेतों मे बीजारोपण को संपादित कर भरपूर फसल पाने का विश्वास रखते है। हर त्यौहार का अपना विशिष्ट महत्व होता है। अक्षय तृतीया पर दान के रस्म से हमें त्याग, दया, करुणा की भावना को अपने अंतःकरण मे जगाने का सरल उपाय किया गया है। इस शुभलग्न की बेला मे दायित्वों का निर्वाह और त्याग के इस परंपरा में सम्मिलित होकर अपने भारतीय संस्कृति परंपरा को जीवंत रखने का प्रयास करें।

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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