Homeदुनियाबांग्लादेशियों की उम्मीद हैं शेख हसीना

बांग्लादेशियों की उम्मीद हैं शेख हसीना

हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को बांग्लादेश से सीख लेनी चाहिए जहां अवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना को पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है। चार बार तो वह लगातार चुनाव जीत चुकी हैं। इस बार विपक्षी दलों ने उनकी सरकार पर आरोप लगाये थे कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे। विपक्ष ने यह भी मांग की थी कि शेख हसीना की सरकार पहले इस्तीफा दे, तब चुनाव कराए। कुछ राष्ट्रों ने विपक्ष की इस मांग का समर्थन भी किया था लेकिन बाहरी देशों को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता। विपक्षी दलों की भावना को देखते हुए विदेशी पर्यवेक्षकों की देखरेख मंे चुनाव कराया गया था। भारत का शेख हसीना को समर्थन रहा है। यह समर्थन तो शेख मुजीब के समय से चल रहा है। बहरहाल, बांग्लादेश मंे राजनीतिक स्थिरता बनने की संभावनाएं हैं और इसके पीछे सरकार की भारत समर्थक विदेश नीति है। बांग्लादेश की जनता यह समझ रही है कि पड़ोसी देश भारत से हर प्रकार की मदद मिलती है और उसका अनावश्यक विरोध करना ठीक नहीं है। पाकिस्तान यही कर रहा है। इसीलिए शेख हसीना बांग्लादेश की उम्मीद बनकर उभरी हैं ठीक उसी तरह जैसे भारत मंे लोग नरेन्द्र मोदी को अपरिहार्य मानने लगे हैं। अभी हाल ही संपन्न हुए चुनाव में शेख हसीना के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के एम निजामुद्दीन लश्कर को सिर्फ 469 लोगों ने ही वोट दिये। शेख हसीना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।

बांग्लादेश में 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में प्रधानमंत्री और आवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना ने गोपालगंज-3 संसदीय सीट से शानदार जीत दर्ज की है। शेख हसीना को 249,965 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी और बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के एम निजाम उद्दीन लश्कर को महज 469 वोट ही मिले। शेख हसीना ने 1986 से आठ बार गोपालगंज-3 सीट पर जीत हासिल की है। प्रधानमंत्री हसीना लगातार चैथा कार्यकाल हासिल करने वाली हैं। उनका अब तक का यह पांचवां कार्यकाल होगा। हसीना 2009 से बांग्लादेश में शासन कर रही हैं। बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी दलों ने चुनाव का बहिष्कार किया है।

अनियमितताओं के आरोप को लेकर सात मतदान केंद्रों पर मतदान स्थगित भी कर दिया गया था। हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाओं के अलावा, 300 में से 299 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। एक उम्मीदवार के निधन के कारण एक सीट पर मतदान बाद में कराया जाएगा। देश के निर्वाचन आयोग के अनुसार, 42,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान हुआ। चुनाव में 27 राजनीतिक दलों के 1,500 से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में थे और उनके अलावा 436 निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं। भारत के तीन पर्यवेक्षकों समेत 100 से ज्यादा विदेशी पर्यवेक्षक 12वें आम चुनाव की निगरानी कर रहे थे। मतदान के दौरान कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सुरक्षाबलों के 7.5 लाख से ज्यादा सदस्य तैनात किए गए थे।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत का हमेशा समर्थन किया है। मालदीव में मोदी की आलोचना को लेकर उन्होंने कहा, भारत हमारा भरोसेमंद दोस्त है। उसने हमेशा हमारा समर्थन किया है। उसने हमारे लिब्रेशन आंदोलन के दौरा भी हमारा साथ दिया। जब हमने अपना पूरा परिवार खो दिया था तो उन्होंने हमें आश्रय दिया। हमारी शुभकामनाएं भारत के लोगों के साथ हैं।

बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं। उनकी पार्टी आवामी लीग ने कुल 300 सीटों में से दो-तिहाई सीटें जीत ली हैं। शेख हसीना 2009 से लगातार बांग्लादेश की पीएम हैं और वह इस बार पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनेंगी। 1991 से 1996 तक भी वह प्रधानमंत्री थीं। शेख हसीना की पार्टी को आम चुनाव में 2 लाख 49 हजार 465 वोट मिले जबकि विपक्षी दलों को महज 469 वोट ही मिले। देश की 18 विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था। शेख हसीना को भारत की तरफ झुकाव वाला और एक सेकुलर नेता माना जाता है। उनके परिवार को सेना ने मार दिया था। तब वह जर्मनी में थीं। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण दी थी और वह छह साल तक भारत में रही थीं।

बांग्लादेश में 1990 के बाद से नियमित चुनाव हो रहे है और 1990 में सेना का शासन का शासन था 1975 से 1990 के बीच में उसको हटाने के बाद में 1991 में इलेक्टेड गवर्मेंट हुई थी। जब इलेक्टेड गवर्मेंट आई थी तब केयरटेकर गवर्मेंट के माध्यम से चुनाव हुआ था। नियमित रूप से हर पांच साल में बांग्लादेश में चुनाव होता है। अभी 12वीं जातीय संसद का चुनाव हुआ, इसमें 28 दलों ने भाग लिया। बांग्लादेश में कुल 44 राजनीतिक दल है। 16 दलों ने इस चुनाव का बॉयकॉट किया। बॉयकॉट करने वाले दल में बांग्लादेश के बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी थी, जो खालिदा जिया और उनके बेटे तारिक रहमान द्वारा लीड की गई पार्टी है। इस पार्टी ने 12वीं जातीय संसद चुनाव का बॉयकॉट किया, इसके बावजूद 1800 के लगभग कैंडिडेट ने इस चुनाव में भाग लिया। मुख्य राजनीतिक दल इसमें भाग ले रहे थे उनमें आवामी लीग बांग्लादेश का सबसे बड़ी राजनीतिक दल है। उसकी पूरे बांग्लादेश में उपस्थिति है, वो भाग ले रहा है और कुछ नई पार्टियां थीं जिसमें रणमूल, बीएनपी, बांग्लादेश कांग्रेस पार्टी, सुप्रीम पार्टी कई तरीके के राजनीतिक दलों ने इसमें भाग लिया। यह प्रयास किया गया कि इस चुनाव को फेयर और पार्टिसिपेटिंग इलेक्शन बनाया जाए। हालांकि, मुख्य विपक्षी दल बीएनपी, कुछ इस्लामिक दल और लेफ्ट यानी वामपंथी, जातीय समाज यात्री दलों ने हिस्सा नहीं लिया। इसी वजह से यह चुनाव इतना कॉन्ट्रोवर्शियल चुनाव हो गया। इनकी मांग थी कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दें और साथ ही वो बांग्लादेश में एक नॉनपार्टीशन केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से चुनाव कराएं। उनका कहना था कि रूलिंग पार्टी ठीक से इलेक्शन नहीं करायेगी। जब तक वहां पर नॉन पार्टिजन सरकार नहीं होगी तब तक फ्री फेयर इलेक्शन नहीं होंगे। हालांकि, सत्तारूढ़ दल का दावा था कि वे मुक्त और पार्टिसिपेटिव इलेक्शन करायेंगे साथ ही चुनाव आयोग को पूरी स्वायत्तता से चुनाव कराने दे रहे थे।
सत्तारूढ़ दल यानि अवामी लीग बहुत पुराना राजनीतिक दल है इसकी स्थापना 1948 में हुई थी। इस दल ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता आंदोलन की डोर संभाली हुई थी। ये दल पूरे बांग्लादेश में है। दूसरे राजनीतिक दल जो बॉयकॉट कर रही हैं, उनमें प्रमुख बांग्लादेश नेशनल्स पार्टी की 1978 में स्थापना हुई थी और सैन्य शासन था। जियाउर रहमान, वो खालिदा जिया के पति थे, उन्होंने इस पार्टी को बनाया था। यह मानकर चलिए कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का जो स्ट्रक्चर है वो आर्मी का है और उन्होंने जो राष्ट्रवाद का नारा दिया वो इस्लाम आधारित राष्ट्रवाद था। जो कि बांग्लादेश की जब 1971 में स्थापना हुई थी, उसके विपरीत था। क्योंकि बांग्लादेश की आजादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और भाषाई राष्ट्रवाद के आधार पर हुई है लेकिन शेख मुजबिर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश ने पाकिस्तान की ढाल पर इस्लामिक राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने उसमें अग्रणी भूमिका निभाई। जब आप बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का ट्रैक देखेंगे, 1991 में जब नेस्टलिस्ट पार्टी सत्ता में आई, तब उन्होंने सबसे पहले डेमोक्रेसी के साथ जो खिलवाड़ किया। 1994 में ममोरा में एक बाई इलेक्शन हुआ था और आवामी लीग ने डिमांड किया कि अगला चुनाव न्यूट्रल केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से होना चाहिए। यह बात मान ली गई और संविधान संसोधन करके संविधान का 58वां प्रावधान जोड़ा गया। उसमें केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से चुनाव किया गया।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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