Homeकहानी"हामिद अली खां की बहन"

“हामिद अली खां की बहन”

हामिद अली खां: अरे भई ! मेरी टोपी कहां गायब कर दी, तुम लोगों ने।
हामिद अली खां कहीं जाने की जल्दी में थे। अपने कमरे में काफी देर से टोपी को तलाश रहे थे।
उनकी मोहतरमा कमरे में आती हैं और झुंझलाहट से बोलती हैं। … आप कहां के लिए सज संवर रहे हैं।
हामिद अली खां अपनी मोहतरमा पर लपकते हैं और कहते हैं। … तुम सब लोग तो कूप मंडूक बनके रहे गए हो। दुनिया में कब क्या है ? कौनसा दिन है ? कुछ पता नही। और बानो तुमने तो बिलकुल ही हद कर दी है। मेरी टोपी कहां है।
बीवी बानो हामिद अली खां की पढ़ी लिखी बातों पर बहुत चिढ़ती थीं। कूप मंडूक को वो गाली समझ बैठी और बोलीं। …. अपनी कलेक्ट्री मुझे मत दिखाना। और हां वैसे आप ऐसे माहौल में जा कहां रहे हैं।
हामिद अली खां को बानो की बातें मानो सुई की तरह चुभ रही थीं। वो जाने की जल्दी में थे और उनकी टोपी नहीं मिल रही थी। गुस्से से बोलते हैं। … आज रक्षाबंधन है, बदनसीब। मुझे शहर जाना है। मेरी बहन इंतजार में होगी।
बानो हामिद अली खां के पास आती हैं और कहती हैं। … आप अपने आपको बहुत काबिल समझते हो। दुनिया की खुद जानकारी नहीं रखते और बनते हैं मिर्जा गालिब। …. शहर में आग फैली है। मिटे मुसलमानों पर जुल्म बरसा रहे हैं। उन्हें खुलेआम मारा और उनके घरों को जलाया जा रहा है। देंगे की आग में पूरा शहर जल रहा है और आप वहां जाने की तैयारी में हैं।


हामिद अली खां बानो के कंधों को जोर से झंझोड़ते हैं और कहते हैं। … बेवकूफ ! आज रक्षाबंधन है। मैं हर साल अपनी बहन रामबेटी आर्य से राखी बंधवाता हूं। और वो मेरा इंतजार कर रही होंगी। .. और फिर आज के दिन वो और उनका परिवार मेरे बिना खाना भी नहीं खाता। रहा सवाल माहौल का तो मेरा कुछ नहीं होगा। मुझे सब जानते हैं।
बानो हामिद अली खां पर झुंझलाती हुई कहती हैं।… शहर में हिंदू मुसलमानी की जंग फैली है और आप एक हिंदू के घर में राखी बांधने जाने पर अड़े हैं।
हामिद अली खां का पारा सातवें आसमान पर पहुंचता उससे पहले उनकी बेटी इकरा हाथ में टोपी लेकर कमरे में पहुंच जाती है और टोपी को हामिद अली खां को दे देती है। हामिद अली खां लपाएं झपाएं कमरे से बाहर निकल जाते हैं।
शहर के बीचों बीच स्थित रामबेटी आर्य का मकान था। घर में रक्षाबंधन की तैयारी चल रही थीं। रामबेटी आर्य एक तरफ बैठी थीं। उनके बगल में राखी और मिठाई की थाली रखी थी। रामबेटी के हाव भाव से महसूस हो रहा था कि किसी का इंतजार कर रही हैं। घर के सभी मेंबर उन्हें देखे जा रहे थे। रामबेटी के एक सगे भाई थे। वो भी राखी बंधवाने आए हुए थे। उनसे रहा नहीं जाता है और वो रामबेटी के पास आकर कहते हैं। …. जीजी ! शहर का माहौल बहुत खराब है। मुसलमानों ने हिंदुओं की दुकानों में आग लगा दी है। लूटपाट मचा रखी है। … और फिर शहर में कर्फ्यू लगा है। हामिद आने वाला नहीं है। आपने मुझे भी अभी तक राखी नहीं बांधी है। घर में सब भूंखे भी हैं।
रामबेटी आर्य हाथ में थाली उठाती हैं और उसे ऊंचे पर रखते हुए कहती हैं। … हामिद मेरा छोटा भाई है। मैं उसे सगे भाई से भी अधिक प्यार करती हूं। वो हर साल मुझसे राखी बंधवाने आता है और इस बार भी आयेगा।
रामबेटी आर्य के पति आचार्य जी उन्हें समझाते हुए कहते हैं। …. हां ये बात ठीक है कि वो हर वर्ष आपसे राखी बंधवाने आता है। लेकिन इस बार माहौल बहुत खराब है। और शहर में कर्फ्यू है। ऐसे में वो नहीं आ सकता। …. घर वालों ने समझा दिया होगा कि हिंदुओं के यहां ऐसे माहौल में मत जाओ।
इसी बीच घर के दरवाजे से खटखटाने की आवाज आती है। रामबेटी दौड़ के दरवाजे पर जाती हैं और दरवाजा खोलती हैं, तो देखती हैं कि हामिद अली खां खड़े हैं। रामबेटी फौरन हामिद अली खां को दरवाजे के अंदर कर लेती हैं। और कहती हैं।… इस बार बहुत देरी कर दी हामिद।
हामिद अली खां के चेहरे की रंगत बता रही थी कि कितनी मुसीबत से वो गांव से शहर तक आए थे। हामिद अली खां ने सबको बताया कि वो यहां तक कैसे आए हैं।
बहन रामबेटी ने बिना देर किए हामिद अली खां की कलाई पर राखी बांध दी। हामिद अली खां ने जेब से बॉक्स निकाला और रामबेटी को दे दिया। उसके बाद रामबेटी ने अपने सगे भाई को राखी बांधी।
राखी की रस्म के बाद सभी ने साथ बैठकर खाना खाया। हामिद अली खां बहन के घर घंटों रुका करते थे, लेकिन आज जल्दी में थे। भले ही वो अपनी मोहतरमा के सामने उनकी एक न चलने देते हों। मगर वो अपनी बीवी बच्ची से प्यार भी बहुत करते थे। शहर के हालातों को देखते हुए वो घर पर जल्द पहुंचना चाहते थे। उन्होंने बहन से आज्ञा ली और वहां से निकल आए।
हामिद अली खां किसी भी तरह कोई मुसीबत परेशानी हो लेकिन अपनी बहन रामबेटी आर्य से राखी बंधवाना नहीं भूलते थे। यहां तक कि तीन वर्ष कोरोना काल में भी उन्होंने राखी बंधवाना बंद नहीं किया। बहन के घर में भी उनके बिना राखी का त्योहार अधूरा रहता था। उनके पहुंचने के बाद ही राखी की रस्में अदा की जाती थीं।
हामिद अली खां 28 वर्षों से रामबेटी से राखी बंधवाने आ रहे थे। इन वर्षों में हामिद अली खां ने एक भी अंजा नहीं किया था। उनकी बहन रामबेटी भी उनके बिना किसी को पहले राखी नहीं बांधती थीं।
आज फिर रक्षाबंधन का त्योहार था। इस बार हामिद अली खां के कमरे से कोई हलचल सुनाई नहीं दे रही थी। हामिद अली खां की बीवी बानो और उनकी बेटी इकरा आपस में बातचीत कर रही थीं कि आज अब्बू उठे नहीं। लगता है कि भूल गए हैं।
उनकी बेटी इकरा और बीवी बानो दोनो कमरे में आती हैं और देखती हैं कि हामिद अली खां दीवान पर अभी तक लेटे हैं।
बानो उनके पास जाकर कहती हैं। … सुबह के दस बज गए और आप अभी तक लेटे हैं। जाना नहीं है।
हामिद अली खां उठकर बैठते हैं और कहते हैं।… कहां?
बानो चौकते हुए कहती हैं। …. शहर। आज रक्षाबंधन है।
हामिद अली खां की आंखों से आंसू आ जाते हैं और कहते हैं। .. अब किससे राखी बंधबाऊंगा।
बानो और इकरा हामिद अली खां के दीवान पर बैठ जाती हैं। इकरा कहती है। .. क्या हुआ अब्बू।
हामिद अली खां रुआंसू गले से कहते हैं। …. बेटी ! राखी बांधने वाली मेरी बहन अब इस दुनिया में नहीं है।
इतना सुनकर इकरा और बानो की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं और हामिद अली खां को संभालती हैं।
बानो अपने आंसुओं को पोछती हैं और कहती हैं। .. जल्दी उठिए और बाबा की मजार पर जाइए और उनके लिए दुआ कीजिए। हम भी नमाज में उनके लिए दुआ करेंगे।
हामिद अली खां को बानो और इकरा ने मानो नई ऊर्जा दे दी थी। वो उठते हैं और सीधे मजार की तरह रवाना हो जाते हैं।

मोहम्मद नईम
लेखक आकाशवाणी के जिला संवाददाता हैं

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